________________ टक्कर होती है, यद्यपि दार्शनिक पक्ष भी दोनों के भिन्न हैं। वहां कोई मेल नहीं है। वहां इतना मेल नहीं है तो इतना संघर्ष भी नहीं है। संघर्ष का मुख्य बिन्दु है आर्थिक व्यवस्था। समाजवाद की यह स्थापना है। केवल स्थापना ही नहीं, प्रयोग कर चुका है कि संपत्ति समाज की है। उस पर व्यक्ति का स्वामित्व स्वीकार नहीं किया जा सकता, समाज का स्वामित्व स्थापित होना चाहिए। उत्पादन, विनिमय और वितरण पर समाज का स्वामित्व स्थापित होना चाहिए। समाजवाद की मर्यादा में संपत्ति का व्यक्तिगत स्वामित्व मान्य नहीं है। कर्मवाद की व्याख्या करने वाले संपत्ति के व्यक्तिगत स्वामित्व को भी न्यायपूर्ण और उचित ठहराते हैं। यह बहुत उलझन भरा प्रश्न है। इसलिए यह प्रश्न बार-बार सामने आता है कि समाजवाद या साम्यवाद की स्थापना होने पर कर्मवाद का क्या होगा? कर्मवाद कैसे टिक पाएगा? ऐसा लगता है कि दुनिया में गरीब और धनवान दोनों टिके रहें तब तो कर्मवाद टिकेगा और ये दोनों न रहें तो कर्मवाद का सारा महल ढह जाएगा। पता नहीं यह सिद्धान्त क्यों बन गया। पर सचमुच बन गया। जब-जब विज्ञान के द्वारा नयी उपलब्धियों की घोषणा होती है, तब-तब पहला प्रश्न यह होता है कि अब धर्म कैसे टिकेगा? आत्मा और पुनर्जन्म का सिद्धान्त कैसे टिकेगा? कर्मवाद कैसे टिकेगा? मुझे लगता है कि बहुत ही छिछले चिन्तन के कारण इस प्रकार के तात्कालिक विचार बन जाते हैं। काल्पनिक और कृत्रिम समस्याएं हमारे सामने उपस्थित हो जाती हैं। क्या गरीब और अमीर का भेद मिट जाने मात्र से कर्मवाद समाप्त हो जाएगा? यदि कर्मवाद का आधार इतना कमजोर है तो मैं भगवान से प्रार्थना करूंगा कि उसे समाप्त होने दें। यद्यपि मैं जैन मुनि हूं। भगवान् को मानता हूं पर भाग्य-विधाता नहीं मानता। फिर भी भावना के आवेग में प्रार्थना करता हूं कि ऐसे कर्मवाद को समाप्त हो जाने दें। हमें कोई प्रयोजन नहीं है। जिसकी भित्ति इतनी कमजोर हो, जिसकी नींव इतनी कमजोर हो, उसे टिकाकर भी हम क्या कर पाएंगे? उसे कब तक टिका पाएंगे। ये व्यवस्थाएं तो बदलती रहेंगी। कभी समाजवाद का अगला चरण भी आ सकता है। दुनिया के बहुत बड़े हिस्से में समाजवाद या साम्यवाद समाजवाद में कर्मवाद का मूल्यांकन 277