Book Title: Karmwad
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 286
________________ नहीं होता, कोई अर्थ नहीं होता। कर्मवाद की धारणा के साथ भूत जुड़ा हुआ है। यदि हमारा कोई अतीत नहीं है तो कर्मवाद को स्वीकार करने की कोई जरूरत नहीं है। यदि हमारा कोई भविष्य नहीं है तो कर्मवाद को स्वीकार करने की कोई जरूरत नहीं है। कर्मवाद के साथ भूत, भविष्य और वर्तमान-तीनों काल जुड़े हुए हैं। . कर्मवाद का दूसरा सिद्धान्त है-परिस्थितिवाद का अस्वीकार / केवल वर्तमान को स्वीकार करने वालों को परिस्थितिवाद मान्य हो सकता है, किन्तु कर्म को स्वीकार करने वालों को मान्य नहीं हो सकता। परिस्थिति को निमित्त माना जा सकता है, एक हेतु या कारण माना जा सकता है। पर सारा भार परिस्थिति पर नहीं लादा जा सकता, नहीं थोपा जा सकता। वह इतना भार उठाने में सक्षम भी नहीं है। जहां कर्मवाद की स्वीकृति है वहां चेतन की स्वीकृति है, पूर्वजन्म और भावीजन्म की स्वीकृति है। जहां इनकी स्वीकृतियां हैं वहां परिस्थितिवाद की एकाधिकार स्वीकृति नहीं हो सकती। ____तीसरा प्रश्न है-आर्थिक पक्ष का। वहां कर्मवाद की प्रचलित धारणा यह है-कोई आदमी धनी होता है तो लोग कहते हैं-बहुत भाग्यशाली है, बड़ा पुण्य किया है इसलिए इतना धन मिल गया। कोई गरीब होता है तो लोग कहते हैं-भाग्यहीन आदमी है, अच्छा कर्म नहीं किया, इसलिए दुःख भोग रहा है, संताप भोग रहा है। कर्मवाद को इस रूप में समझा गया है कि धनी होना पुण्य कर्म का योग है और निर्धन होना पाप कर्म का योग है। कोई आदमी बड़े-से-बड़ा धनी होता है तो उसे मान्यता मिल जाती है। बहुत धन के संग्रह को बुरा नहीं माना जाता, कर्मवाद के संदर्भ में उसका समर्थन किया जाता है। किसी आदमी को रोटी नहीं मिलती तो कर्मवाद के सन्दर्भ में इसका समाधान इस प्रकार दिया जाता है-इसने पिछले जन्म में बहुत बुरे कर्म किए हैं। यदि रोटी न मिले तो कोई क्या करे। स्वयं का किया हुआ कर्म है, यह भोगेगा, हमें इससे क्या? कर्मवाद के सन्दर्भ में धनी और निर्धन-दोनों अवस्थाओं के बारे में निर्णय दिया जाता है, उन्हें भाग्य के साथ जोड़ दिया जाता है। यह आर्थिक पक्ष ऐसा है जहां समाजवाद और कर्मवाद की भारी 256 कर्मवाद

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