Book Title: Karmwad
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 284
________________ है। व्यक्ति के समूचे व्यक्तित्व का निर्माण परिस्थिति से होता है। जैसी परिस्थिति होती है वैसा ही व्यक्ति का निर्माण हो जाता है। व्यक्तित्व के निर्माण का दायित्व परिस्थिति पर होता है। केवल वर्तमान और केवल परिस्थिति के आधार पर समाजवाद का तीसरा सिद्धान्त बनता है-समाज-व्यवस्था का परिवर्तन। परिवर्तन की प्रक्रिया का मूल आधार आर्थिक पक्ष है। आर्थिक समस्या मूलभूत समस्या है। इसे सुलझाए बिना सामाजिक समस्याएं सुलझ नहीं सकतीं। कार्ल मार्क्स ने इस भाषा में सोचा था-समाज जो बनता-बिगड़ता है वह अर्थ के आधार पर बनता-बिगड़ता है। अर्थ-व्यवस्था ही समाज की रीढ़ है और उसके आधार पर ही समाज अच्छा या बुरा बनता है। केवल मार्क्स ही ऐसा सोचने वाला व्यक्ति हुआ, यह नहीं कहा जा सकता। भारतीय चिन्तकों में भी इस प्रकार का चिन्तन प्रस्फुटित हुआ था। पूरे समाज के संदर्भ में भारतीय चिन्तन तीन वर्ग (धर्म, अर्थ और काम) अथवा चतुर्वर्ग (धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष) में विभाजित था। यह प्रश्न चलता था कि त्रिवर्ग या चतुर वर्ग में मुख्य कौन? भिन्न-भिन्न मत थे। कोई धर्म को मुख्य मानता, कोई काम को मुख्य मानता और कोई मोक्ष को मुख्य मानता। भारतीय राजनीति के नक्षत्र महात्मा कौटिल्य ने इन सब मतों का उल्लेख कर अन्त में अपने अभिमत का उल्लेख किया है। यह उल्लेख मार्क्स के चिन्तन से भिन्न नहीं है। कौटिल्य के अनुसार सब वर्गों में अर्थ ही प्रधान है। धर्म और काम-इन दोनों के मूल में अर्थ है। अर्थ है तो धर्म (न्यायाधिकरण) होता है और अर्थ है तो काम होता है। अर्थ के बिना कुछ नहीं होता-न धर्म और न काम। अर्थ को प्रधानता देने वाले चिन्तक भारत में बहुत प्राचीन काल में हुए हैं। और यह एक सचाई है कि समाज के बनने-बिगड़ने में अर्थ का बहुत बड़ा ाथ होता है। समाजवादं का दूसरा पक्ष है-आर्थिक। मार्क्स ने इस बात पर ध्यान दिया कि जब तक अर्थ-व्यवस्था में परिवर्तन नहीं किया जाता तब तक समाज का विकास नहीं हो सकता, सामाजिक परिवर्तन नहीं हो सकता। आर्थिक व्यवस्था समाजवाद का ध्येय बन गया। यह उनका दूसरा पक्ष है। अब प्रश्न यह रहा कि ध्येय को प्राप्त कैसे किया जाए? केवल 274 कर्मवाद

Loading...

Page Navigation
1 ... 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316