Book Title: Karmwad
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 283
________________ यदि वह केवल आर्थिक आन्दोलन होता तो आज तक नहीं चल पाता। यदि वह कोरा राजनीतिक आन्दोलन होता तो भी वह आज तक नहीं चल पाता। वह चल रहा है और इसलिए चल रहा है कि उसके पीछे एक दर्शन है, एक सुनियोजित विचारधारा है। वही आन्दोलन लमबे समय तक टिक सकता है जिसकी पृष्ठभूमि में दर्शन होता है। समाजवाद के दार्शनिक पक्ष को ऐतिहासिक द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद कहा जाता है। इसका पहला या मूलभूत सिद्धान्त यह है-इस जगत् का आधार अचेतन है, अचित है। इस जगत् का आधार कोई सचेतन नहीं है। इससे एक परिस्थिति उभरती है। वह है-केवल वर्तमान, न अतीत और न भविष्य। आदमी जन्म लेता है। उसके पीछे कोई अतीत नहीं होता, उसका कोई भविष्य नहीं होता, कोरा वर्तमान होता है। आप सोच सकते हैं कि भारतीय दर्शन में जो भाषा चार्वाक की थी, वही भाषा समाजवादी दर्शन की है। चार्वाक ने भी केवल वर्तमान. को स्वीकारा था और समाजवादी दर्शन भी केवल वर्तमान को स्वीकारता है। दोनों की उद्देश्यगत वास्तविकता बहुत भिन्न है। चार्वाक दर्शन पुनर्जन्म और कर्मवाद को अस्वीकार कर वर्तमान जीवन को सुख से जीने के उद्देश्य से अस्तित्व में आया था और समाजवाद विषमतापूर्ण समाज-व्यवस्था को बदलने के उद्देश्य से अस्तित्व में आया था। उद्देश्य की दृष्टि से दोनों में कोई तुलना नहीं की जा सकती। केवल इतनी तुलना की जा सकती है कि चार्वाक भी अनात्मवादी दर्शन है और द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद भी अनात्मवादी दर्शन है। जो दर्शन केवल वर्तमानसम्मत होता है, अतीत और भविष्यसम्मत नहीं होता, उसे लम्बी-चौड़ी चर्चा में जाने की जरूरत नहीं होती, कोई लम्बी चिन्ता करने की जरूरत नहीं होती। उसे अदृश्य जगत् में जाने की चिन्ता नहीं होती और बहुत सूक्ष्म अवगाहन करने की भी कोई जरूरत नहीं होती। जो दृष्ट है, उपलब्ध है, उसी की जरूरत होती है। इससे समाजवाद का दूसरा सिद्धान्त फलित होता है। वह है परिस्थितिवाद। जब केवल वर्तमान है तो केवल वर्तमान में परिस्थितिवाद पनपता है। निष्कर्ष की भाषा में कहा जा सकता है कि व्यक्ति परिस्थिति की देन समाजवाद में कर्मवाद का मूल्यांकन 273

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