Book Title: Karmwad
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 292
________________ किया जा सकता। इस सचाई को समझ लेने पर अकाल-मृत्यु, बुढ़ापा और बीमारियां-इन सबमें परिवर्तन लाया जा सकता है। आर्थिक व्यवस्था, चिकित्सा की सुविधा और जीवन-यापन की सुविधा होने पर उन सारी स्थितियों में परिवर्तन हो सकता है। कर्मवाद का इस परिवर्तन में कोई विरोध नहीं है। . सौभाग्यवश भारतीय दर्शनों में और विशेषतः जैन दर्शन में कर्मवाद का बहुत गहरा चिन्तन बहुत विस्तार के साथ हुआ है। मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूं कि कर्मवाद को समझे बिना ध्यान भी ठीक से नहीं किया जा सकता, आध्यात्मिक विकास नहीं किया जा सकता। जो व्यक्ति आध्यात्मिक विकास करना चाहता है, मन को एकाग्र करना चाहता है, मानसिक स्थिरता को उपलब्ध होना चाहता है, उसके लिए कर्म का प्रकाश बहुत जरूरी है। कर्म की प्रक्रिया को समझे बिना तात्पर्य की भाषा में आन्तरिक व्यक्तित्व को समझे बिना मन चंचल होता है और हम मान बैठते हैं कि मन चंचल है। यह मानना बहुत बड़ा झूठ है। यदि कोई मुझे कहे कि मन बहुत चंचल है तो मैं इसे बहुत बड़ा झूठ मानता हूं। मन बिलकुल चंचल नहीं है। मेरे हाथ में यह कपड़ा है। मैं हाथ हिलाता हूं और यह हिल रहा है। क्या यह चंचल है? आप इसे चंचल ही मानेंगे। पर यह चंचल कहां है? कपड़ा बेचारा क्या चंचल और क्या अचंचल। हाथ हिलता है तो यह चंचल है और हाथ नहीं हिलता है तो यह अचंचल है। हवा का क्या ठंडा और क्या गरम? थोड़ी-सी वर्षा होती है तो हवा बहुत ठंडी हो जाती है। थोड़ी बर्फ पड़ती है तो हवा बहुत ठंडी हो जाती है और तेज धूम तपती है तो हवा बहुत गरम हो जाती है। यह बालू ठंडी है या गरम? यदि कोई सर्दी में बालू पर चलता है तो ऐसा लगता है कि वह बर्फ में चल रहा है और कड़ी धूप में बालू पर चलता है तो ऐसा लगता है कि वह आग पर चल रहा है। हमारे मन की भी यही स्थिति है। जब कर्म-शरीर की प्रेरणाएं जागती हैं, वृत्तियां उभरती हैं तो मन बड़ा चंचल हो जाता है। भीतर की वृत्तियां शान्त होती हैं तो मन शान्त और स्थिर हो जाता है। जीवन की प्रत्येक समस्या पर चिन्तन करने के लिए कर्मवाद को पढ़ना आवश्यक 282 कर्मवाद

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