________________ समाजवादी और साम्यवादी भी नहीं कर पाएंगे। मार्क्स ने स्टेटलेस स्टेंट (राज्यसत्ता-रहित राज्य) की कल्पना की। समाजवाद का अन्तिम ध्येय है राज्यसत्ता-रहित राज्य। अभी यह बहुत दूर है। आज साम्यवादी देशों में पूरा एकाधिनायकवाद है। शासन-तन्त्र इतना कठोर है कि आदमी को उसे सहने में भी कुछ कठिनाई होती है। पता नहीं आदमी कब इतना आत्मानुशासित होगा और कब एक आदमी दूसरे आदमी पर इतना भरोसा करेगा और वह दिन कब आएगा कि जिस दिन शासनतंत्र की व्यर्थता सिद्ध होगी, उसकी कोई अपेक्षा प्रतीत नहीं होगी। जैन आगमों में ऐसी व्यवस्था का उल्लेख मिलता है, भले फिर वह देवताओं के लिए हो। और वैसी व्यवस्था में जीने वाला अपने आप उच्चकोटि का देव बन जाता है, वह साधारण मनुष्य नहीं रहता। आज की व्यवस्था और परिस्थिति में जीने वाला मनुष्य तो नहीं ही रहता। कल्पातीत देवों की व्यवस्था में कोई इंद्र नहीं होता, कोई प्रेष्य नहीं होता, कोई स्वामी नहीं होता, कोई सेवक नहीं होता। सब समान ोते हैं और सब-के-सब आत्मानुशासित होते हैं। अनुशासन और तन्त्र जैसी कोई व्यवस्था नहीं होती है। सब-के-सब ऋद्धि, बल और घृति में समान होते हैं। हमारे कुछ दार्शनिकों या योगियों ने सुपर ह्यूमन (अतिमानव) और सुपर कॉन्शसनेस (अतिचेतना) अवतरण की कल्पना की है। उसका सुव्यवस्थित वर्णन प्रस्तुत पद्धति में मिलता है। समाजवादी व्यवस्था में संपत्ति का उत्तराधिकार नहीं होता पर सबके पास समान ऋद्धि नहीं है। किसी के पास धन कम होता है और किसी के पास अधिक धन होता है, किन्तु कल्पातीत व्यवस्था में संपदा भी सबके समान होती है। न कोई बड़ा आदमी है और न कोई छोटा आदमी है। शारीरिक बल भी समान और चिन्तन भी समान। ऐसा समाजवाद न जाने कब आएगा। सैकड़ों-सैकड़ों वर्षों की साधना के बाद मनुष्य उस कल्पातीत व्यवस्था तक पहुंच पाएगा या नहीं, यह नहीं कहा जा सकता। उस कल्पातीत व्यवस्था का आधार वहां जन्म लेने वाले देवों का आन्तरिक परिवर्तन है। उनके क्रोध, मान, माया, लोभ, राग, द्वेष तथा प्रियता और अप्रियता का संवदेन कम होता है, इसलिए उनमें असंभव प्रतीत होने वाली समानता सहज ही घटित 280 कर्मवाद