Book Title: Karmwad
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 285
________________ दार्शनिक समाजवाद, दर्शानिक समतावाद या दार्शनिक साम्यवाद से ध्येयसिद्धि नहीं हो सकती। यह उन्हें स्पष्ट प्रतीत हुआ। इतिहास के अध्ययन के पश्चात् वे इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि दार्शनिक साम्यवाद का बखान करते-करते हजारों वर्ष बीत गए, पर समाज नहीं बदला। वे समाज को बदलना चाहते थे। ध्येय की पूर्ति के लिए उन्होंने तीसरा पक्ष चुना जो समाजवाद का राजनीतिक पक्ष है, ध्येय की पूर्ति का एकमात्र साधन है। समाजवादी धारणा के अनुसार जब तक राज्य की सत्ता हाथ में नहीं आती, तब तक समाज को नहीं बदला जा सकता। समाजवादी उद्देश्यों की पूर्ति की अनिवार्य शर्त है राज्य-सत्ता को हथियाना। राज्य-सत्ता शोषित वर्ग के हाथ में होनी चाहिए। धनिकों और गरीबों तथा मिल-मालिकों तथा मजदूरों के बीच जो वर्ग-संघर्ष चल रहा है वह तब तक नहीं मिटेगा जब तक शोषित वर्ग के हाथ में राज्य-सत्ता नहीं आएगी। इनके हित परस्पर-विरोधी हैं। उनमें कोई समझौता नहीं हो सकता। समाजवाद के आचार्यों ने यह प्रतिपादन किया-पूंजीवादी लोगों के हित और शोषित लोगों के हित इतने विरोधी हैं कि उनमें समझौते की कोई संभावना नहीं है। इस विरोध को मिटाने का एक ही उपाय है, और वह है शोषित वर्ग के हाथ में सत्ता आना। : समाजवाद के तीन पक्ष-दार्शनिक, आर्थिक और राजनीतिक-हमारे सामने हैं। इन तीनों पक्षों के संदर्भ में हमें कर्मवाद को समझना है, उसकी मीमांसा करना है। कर्मवाद का दार्शनिक पक्ष समाजवाद के दार्शनिक पक्ष से बिलकुल उल्टा है। कर्म का अस्तित्व उन दार्शनिकों ने स्वीकार किया जो जगत् का आधार चेतन-अचेतन-इस तत्त्वद्वयी को या केवल चेतन को स्वीकार करते हैं। केवल अचेतन को जगत् का आधार मानने वाला कर्म के सिद्धान्त को स्वीकार नहीं करता। आत्मवादी दर्शनों की मख्य दो धाराएं हैं-द्वैतवाद और अद्वैतवाद। द्वैतवादी धारा के अनसार चेतन और अचेतन-इन दोनों का अस्तित्व है। अद्वैतवादी धारा केवल चेतन तत्त्व के अस्तित्व को स्वीकार करती है। जिन दर्शनों ने कर्म को स्वीकार किया, उनमें एक भी दर्शन ऐसा नहीं है जो कर्म को स्वीकृति देता हो और चेतन तत्त्व को स्वीकार किए बिना कर्म का कोई मूल्य समाजवाद में कर्मवाद का मूल्यांकन 275

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