Book Title: Karmwad
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 282
________________ समाजवाद में कर्मवाद का मूल्यांकन मैं कल्पना करने में कठिनाई का अनुभव करता हूं कि एक आदमी भारत में जन्मा हो और कर्मवाद को न जानता हो; नियति, प्रारब्ध और भाग्य के विषय में कुछ न जानता हो। भारत के सभी आस्तिक दर्शनों ने किसी-न-किसी रूप में कर्म के अस्तित्व को स्वीकारा है। भारत की मिट्टी में कर्म के सिद्धान्तों की जड़ें गहरे तक जमी हुई हैं। खेतों-खलिहानों में भी यदा-कदा कर्म का स्वर सुनाई देता है। घटना की सफलता और असफलता-दोनों से कर्म की दुहाई सुनने को मिलती है। सफल होने वाला व्यक्ति अपनी सफलता का श्रेय पूर्वजन्म में किए हुए पुण्य को देता है और कहता है, 'पूर्वजन्म में अच्छे कर्म किए थे इसलिए मुझे यह सफलता मिली है।' असफल होने वाला भी अपनी असफलता का दायित्व कर्म पर डाल देता है, 'ऐसा ही कोई कर्म किया हुआ था, मैं क्या करूं?' कर्म का इतना गहरा संस्कार है कि उसके लिए मुझे विशेष चर्चा की आवश्यकता का अनुभव नहीं होता। ___आज के युग में जीने वाला, थोड़ा-बहुत भी जनसम्पर्क में आनेवाला, पढ़ने-लिखने वाला और राजनीतिक वातावरण से परिचित रहने वाला कौन व्यक्ति ऐसा होगा जो समाजवाद के नाम से अनजान हो? भारत में इन वर्षों में, कई बार समाजवाद की स्थापना के संकल्प को दोहराया गया है। समाजवाद एक राजनीतिक प्रणाली है, एक आर्थिक प्रणाली है। कर्मवाद एक आध्यात्मिक प्रणाली है। दोनों का क्षेत्र भिन्न है। दोनों की सीमाएं और मर्यादाएं भिन्न हैं। समाजवाद कोरी आर्थिक प्रणाली ही नहीं है, कोरा राजनीतिकवाद ही नहीं है। उसके तीन पहलू हैं-दार्शनिक, राजनीतिक और आर्थिक। 272 कर्मवाद

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