________________ व्यक्ति क्या करेगा? उसकी शक्ति, पुरुषार्थ, कर्तृत्व, चेतना कितनी है? एक-एक 'जीन' में साठ-साठ लाख आदेश अंकित हैं। तब प्रश्न होता है कि हमारा कर्तृत्व, हमारा पुरुषार्थ और हमारी चेतना कहां है? क्या वह एक क्रोमोसोम और 'जीन' में नहीं है? इसीलिए तो इतनी तरतमता है एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में। सबका पुरुषार्थ समान नहीं होता, सबकी चेतना समान नहीं होती। इस असमानता का कारण प्राचीन भाषा में, कर्मशास्त्र की भाषा में 'कर्म' है। एक बार गणधर गौतम ने भगवान महावीर से पूछा-भंते! विश्व में सर्वत्र तरतमता दिखाई देती है। किसी में ज्ञान कम होता है और किसी में अधिक। इसका कारण क्या है? भगवान् बोले-गौतम! इस तरतमता का कारण है 'कर्म' / यदि आज के जीवविज्ञानी से पूछा जाए कि विश्व की विषमता या तरतमता का कारण क्या है, तो वह कहेगा कि सारी तरतमता का एकमात्र कारण है-'जीन'। ... जैसा 'जीन' होता है, गुणसूत्र होता है, आदमी वैसा ही बन जाता है। उसका स्वभाव और व्यवहार वैसा ही हो जाता है। यह 'जीन' सभी संस्कार-सूत्रों तथा सारे विभेदों का मूल कारण है। विज्ञान की भाषा में कहा जाता है कि एक-एक 'जीन' पर साठ-साठ हजार आदेश लिखे हुए होते हैं तो कर्मशास्त्र की भाषा में कहा जा सकता है कि कर्म-स्कन्ध में अनन्त आदेश लिखे हुए होते हैं। अभी तक विज्ञान 'जीन' तक ही पहुंच पाया है और यह 'जीन' इस स्थूल शरीर का ही घटक है, किन्तु कर्म सूक्ष्म शरीर का घटक है। इस स्थूल शरीर के भीतर तैजस शरीर है, विद्युत्, शरीर है। वह सूक्ष्म है। इससे भी सूक्ष्म शरीर है कर्मशरीर। यह सूक्ष्मतम है। इसके एक-एक स्कन्ध पर अनन्त-अनन्त लिपियां लिखी हुई हैं। हमारे पुरुषार्थ का, अच्छाइयों और बुराइयों का, न्यूनताओं और विशेषताओं का सारा लेखा-जोखा और सारी प्रतिक्रियाएं कर्मशरीर में अंकित हैं। वहां से जैसे स्पन्दन आते हैं, आदमी वैसा ही व्यवहार करने लग जाता है। हमारा पुरुषार्थ इसके साथ जुड़ा हुआ होता है। कर्म ही सब कुछ नहीं है। कर्तृत्व और पुरुषार्थ भीतर से आ रहा है, भीतर प्रतिक्रमण 173