________________ कि वर्तमान में मैं जागरूक होता हूं, ध्यान का प्रयोग करता हूं तो इसका अर्थ होगा कि भविष्य में अन्तराय, आवरण और मूर्छा के कारण जो मैंने संचित किए हैं, उन्हें भुगतना होगा और यदि वर्तमान की प्रक्रिया तीव्र होगी तो उन संस्कारों को क्षीण करने की शक्ति भी पैदा हो जाएगी। किन्तु वर्तमान में आने वाली घटना के आधार पर हम कोई भी निर्णय लेते हैं तो निर्णय यथार्थ नहीं हो सकता, वह धर्म के प्रतिकूल होगा, मिथ्या दृष्टिकोण होगा। इस सन्दर्भ में एक प्रश्न आता है कि तब वर्तमान में क्या होना चाहिए? यह प्रश्न भी महत्त्वपूर्ण है। इसका उत्तर इतना ही है कि वर्तमान में जागरूकता बढ़नी चाहिए। ध्यान करने वाले व्यक्ति में घटना और उसके परिणाम के संवेदन का अन्तर स्पष्ट होना चाहिए। यह है वर्तमान की जागरूकता। ___ बच्चा घटना और परिणाम में स्पष्ट फर्क नहीं कर सकता, क्योंकि वह अजान है। मां इधर-उधर कुछ ढूंढ़ रही थी। बच्चे ने पूछा- 'मम्मी! क्या खोज रही हो?' वह बोली-'डॉक्टर का बिल खोज रही हूं।' बच्चा बोला-'डॉक्टर का बिल मैं नहीं जानता। चूहे का बिल इस कोने में है।' बच्चे के लिए डॉक्टर के बिल और चूहे के बिल में कोई अन्तर नहीं होता। जब तक व्यक्ति की धारणाएं या मान्यताएं स्पष्ट नहीं होती, तब तक डॉक्टर का बिल चूहे का बिल ही बना रहता है। हमारी धारणा स्पष्ट होनी चाहिए कि धर्म और ध्यान करने वाले और न करने वाले व्यक्ति में क्या अन्तर होता है। जो व्यक्ति धर्म और ध्यान का प्रयोग करता है, वह घटना के घटित हो जाने पर भी संवेदन से नहीं भरता और जो धर्म और ध्यान का प्रयोग नहीं करता, वह घटना के साथ बह जाता है, संवेदना से भर जाता है। घटना और संवेदन-दोनों पृथक्-पृथक् बातें हैं। एक व्यक्ति के पास लक्षपाक तैल था। उसका निर्माण लाख औषधियों के मिश्रण से होता है। वह बहुमूल्य होता है और उसका मिलना भी बहुत दुर्लभ है। नौकर ने उस तैल भरे मर्तबान को उठाया। 228 कर्मवाद