________________ ये दो विकल्प बन गए। परमाणुओं का संग्रह हुआ पुण्य रूप में और उसका परिणाम घटित हुआ पाप के रूप में। परमाणुओं का संग्रह हुआ पाप के रूप में और उसका परिणाम घटित हुआ पुण्य के रूप में। यह जात्यन्तर का उत्कृष्ट उदाहरण है। यह आमूलचूल परिवर्तन का उदाहरण है। कर्मवाद का दूसरा महत्त्वपूर्ण उदाहरण है-जाति-परिवर्तन। इस जाति-परिवर्तन या शक्ति-परिवर्तन की प्रक्रिया को जानना आवश्यक है। कोई भी आदमी पाप का फल पाना नहीं चाहता। सभी पुण्य का फल पाना चाहते हैं। इसलिए उस प्रक्रिया की जिज्ञासा होना स्वाभाविक है। ___ उसकी प्रक्रिया के तीन घटक हैं-मन, मस्तिष्क और चित्त। इन तीनों को प्रशिक्षित करना होता है। मन और मस्तिष्क-दो हैं। यह आज की वैज्ञानिक धारणा से बहुत स्पष्ट हो गया। विज्ञान की भाषा में ब्रेन अलग है और माइण्ड अलग है। दोनों स्वतन्त्र हैं। किन्तु दर्शन की भाषा में चित्त तत्त्व को भी जोड़ना होगा। इस प्रकार मन, मस्तिष्क और चित्त-ये तीनों स्वतन्त्र हैं। जिस व्यक्ति ने चित्त को अनुशासित कर डाला, उसका मस्तिष्क अनुशासित होगा, उसका मन अनुशासित होगा और वह व्यक्ति स्थितप्रज्ञ या समाधिस्थ कहलाएगा। यदि मस्तिष्क मन और चित्त पर हावी हो जाता है तो वह व्यक्ति शैतान बन जाता है। देव और दानव में इतना ही अन्तर है। प्रत्येक व्यक्ति देव बन सकता है। प्रत्येक व्यक्ति दानव बन सकता है। जिस व्यक्ति ने मस्तिष्क, मन और चित्त पर अनुशासन स्थापित कर डाला, वह देव बन जाता है और जिस व्यक्ति के मस्तिष्क का मन और चित्त पर अनुशासन स्थापित हो जाता है, वह दानव बन जाता है। ध्यान के द्वारा हमें मस्तिष्क को प्रशिक्षित करने का प्रयास करना है। ध्यान के द्वारा मस्तिष्क, मन और चेतना-चित्त . पर स्वामित्व स्थापित करना है। - एक संन्यासी बाजार से गुजर रहा था। उसने देखा, एक टोकरी में खजूर पड़े हैं। बड़े-बड़े और मीठे खजूर। मन ललचा गया। सोचा, खजूर खाऊं। पर पास में पैसा नहीं था। उसने सोचा, खजूर अवश्य खाने हैं। पर मैं मुफ्त में मांगूंगा नहीं। वह सीधा जंगल में गया। लकड़ियां भाव का जादू 243