________________ हैं, दस हजार दिन भी थोड़े होंगे। कर्मवाद और ध्यान की मीमांसा से हम फिर एक निष्कर्ष पर पहंचते हैं कि ध्यान के द्वारा हम कर्म से अकर्म की ओर प्रस्थान करते हैं। वैदिक ऋषियों ने मंगलकामना की थी-तमसो मा ज्योतिर्गमय-अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो। प्रेक्षाध्यान का अभ्यास करने वाला व्यक्ति यह मंगल-भावना करे-कर्मणः अकर्मगमय-कर्म से अकर्म की ओर ले चलो। अकर्म प्रकाश है, कर्म अंधकार है। अकर्म भयमुक्त है, कर्म भयमय है। प्रत्येक ध्यान-साधक यह मंगल-भावना करे कि कर्म के सारे दोष और सारी मलिनताएं समाप्त हों, कृत्रिम समस्याएं और कल्पनाएं नष्ट हों। वह इस सचाई का अनुभव करे कि अकर्म का विकास किए बिना कर्म के साथ उत्पन्न होने वाला दोष कभी समाप्त नहीं होता। इसलिए हम अकर्म की दिशा में आगे बढ़ें और ध्यान जीवन का अनिवार्य अंग बने। अकर्म और पलायनवाद 261