________________ है, अहं और मोह की कलुषता मिलती है, तब वह केवलज्ञान या शुद्ध ज्ञान की धारा संवेदन की धारा बन जाती है। इस धारा में न शुद्ध चैतन्य का अनुभव होता है और न आत्म-दर्शन होता है। ... ज्ञान और संवेदन-यह कर्मवाद की पृष्ठभूमि है। ___अविभक्त बंगाल में चौबीस परगना जिला था। उस जिलें में एक गांव है-कोल्हू। वहां एक व्यक्ति रहता था। उसका नाम था भूपेशसेन। वह बंगाली गृहस्थ था। बहुत बड़ा भक्त था। इतना बड़ा भक्त कि वह भक्ति में बैठता, तब तन्मय हो जाता। बाहरी दुनिया से उसका सम्बन्ध टूट जाता। एक दिन वह भक्ति में बैठा और तन्मय हो गया। बाहर का भान समाप्त हो गया। अन्तर में पूरा जागृत किन्तु बाहर से सुप्त। एक व्यक्ति आया और चिल्लाया, 'भूपेश! क्या कर रहे हो? उठो और संभलो।' वह बहुत जोर से चिल्लाया, किन्तु भूपेश को कोई पता . नहीं चला। उसने भूपेश का हाथ पकड़कर झकझोरा, तब भूपेश ने आंखें खोली और कहा, 'कहिए, क्या बात है?' आगन्तुक बोला, 'मुझे पूछते हो क्या बात है? यहां आंखें मूंदे बैठे हो। तुम्हें पता नहीं, तुम्हारे इकलौते . बेटे को सांप काट गया और वह तत्काल ही मर गया।' भूपेश ने कहा, ‘जो होना था सो हुआ।' आगन्तुक बोला, 'अरे! तुम कैसे पिता? मैंने तो दुःख का संवाद सुनाया और तुम वैसे ही बैठे हो? लगता है कि पुत्र से तुम्हें प्यार नहीं है। तुम्हें शोक क्यों नहीं हुआ? तुम्हें चिन्ता क्यों नहीं हुई? तुम्हें दुःख क्यों नहीं हुआ? तुम्हारी आंखों से दो आंसू क्यों नहीं छलक पड़े?' भूपेश ने कहा, 'जिस दिन बेटा आया था तो मझे पूछकर नहीं आया था और आज वह लौट गया तो मुझे पूछकर नहीं लौटा। उस दिन मैंने कुछ नहीं किया था। आज भी मुझे कुछ नहीं करना है। यह जन्म और मरण की अनिवार्य शृंखला है, जिसमें मेरा हाथ नहीं है। मनुष्य आता है, चला जाता है। तुम्हें इतनी क्या चिन्ता है?' आगन्तुक चुप हो गया। उसके पास बोलने के लिए कुछ नहीं बचा। कुछ क्षण रुककर वह बोला, 'अब उसकी चिता जलानी है, साथ चलो।' भूपेश उसके साथ गया। पुत्र की अर्थी श्मशान में पहुंची। चिता में पुत्र को सुला, आग लगाकर कहा, 'बेटे, तुम जिस घर से आए 264 कर्मवाद