________________ का भार ढोते हैं। वेदान्त का साधन-सूत्र है कि साधक द्रष्टा होकर जीए। वह घटना के प्रति साक्षी रहे, उससे देखे, किन्तु उससे प्रभावित न हो, उसमें लिप्त न हो। ____ ज्ञान होना और संवेदन न होना-यह द्रष्टा का जीवन है। मेरे हाथ में कपड़ा है। मैं इस कपड़े को जानता हूं, देखता हूं। मैं इस कपड़े को कपड़ा मानता हूं। इससे अधिक कुछ नहीं मानता। यह ज्ञान का जीवन है, यह आत्म-दर्शन है। प्रश्न हो सकता है-'यह आत्म-दर्शन कैसे? यह तो वस्त्र-दर्शन है। वस्त्र-दर्शन को हम आत्म-दर्शन कैसे मान सकते हैं?' इसका उत्तर बहुत साफ है। मैं वस्त्र को जानता हूं। मैं केवल जानता हूं, उसके साथ कोई संवेदनात्मक सम्बन्ध स्थापित नहीं करता। इसका अर्थ है, मैं ज्ञान को जानता हूं और ज्ञान को जानने का अर्थ है, मैं अपने आपको जानता हूं। ज्ञान और ज्ञानी सर्वथा अभिन्न नहीं हैं और सर्वथा भिन्न भी नहीं हैं। बहुत सारे लोग आत्म-दर्शन करना चाहते हैं। आत्म-दर्शन का उपाय बहुत जटिल माना जाता है; मैं आपको बहुत सरल उपाय बता रहा हूं। आप इस वस्त्र को देखें। यह आपका आत्म-दर्शन है। आप वस्त्र को देख रहे हैं, तब केवल वस्त्र को नहीं देख रहे हैं। जिससे वस्त्र को देख रहे हैं, उसे भी देख रहे हैं, अपने ज्ञान को भी देख रहे हैं। जहां केवलज्ञान का प्रयोग होता है वहां अपने अस्तित्व का अनुभव होता है। अपने अस्तित्व का अर्थ है-केवलज्ञान का अनुभव / ज्ञान में किसी दूसरी भावना का मिश्रण हुआ कि वह संवेदन बन गया। ज्ञान का धरातल छूट गया। केवलज्ञान का अनुभव करना, अपने अस्तित्व का अनुभव करना है। अपना अस्तित्व उससे पृथक नहीं है। मैं ज्ञान का अनुभव कर रहा हूं, इसका अर्थ है कि जहां से ज्ञान की रश्मियां आ रही हैं उस आत्म-सत्ता का अनुभव कर रहा हूं। क्योंकि आत्मा और ज्ञान भिन्न नहीं हैं। केवलज्ञान का प्रयोग करने का अर्थ है-अपने आपको जानना और अपने आपको जानने का अर्थ है-केवलज्ञान का प्रयोग करना। इस अर्थ में केवलज्ञान का प्रयोग और आत्म-दर्शन एक ही बात है। - ज्ञान की निर्मल धारा में जब राग और द्वेष का कीचड़ मिलता कर्मवाद 263