________________ अकर्म और पलायनवाद एक महिला साहित्यकार ने पूछा-क्या ध्यान पलायनवाद नहीं है? मैंने सोचा, आदमी में कर्म से इतना प्रेम हो गया है कि अकर्म में उसे पलायन की गंध आने लगी है। आदमी निरंतर कर्म करना चाहता है, पर सचाई यह है कि वह निरंतर कर्म कर नहीं पाता, फिर भी इस दुनिया का आदमी यह कभी नहीं चाहता कि कोई व्यक्ति कर्म को छोड़कर अकर्म की दिशा में प्रस्थान करे। कर्म से प्रेम है और अकर्म से डर लगता है। वह स्वयं अकर्म होना नहीं चाहता और यदि कोई अकर्म होता है तो उसे होने नहीं देता। वह चाहता है कि सभी कर्म से बंधे रहें। पता नहीं, यह प्रवृत्ति कब हुई? क्यों हुई? और कैसे हुई? इसलिए बहुत लोग संन्यास को, ध्यान को और त्याग को पलायनवादी मनोवृत्ति मानते हैं। ___ हम इस विषय में कुछ विमर्श करें कि क्या ध्यान करना एक पलायन है? यदि पलायन है तो वह सामाजिक व्यक्ति को मान्य नहीं हो सकता। ध्यान की बात ही समाप्त हो जाती है और उससे समाज तथा राष्ट्र को खतरा हो सकता है। इसलिए भय लगता है कि कोई भी व्यक्ति ध्यान में चला न जाए, त्याग में जुड़ न जाए। समाज संघर्ष और समस्याओं से जुड़ा हुआ है। यहां अनेक समस्याएं हैं। प्रश्न होता है, समस्या क्यों उत्पन्न होती है? जहां कर्म होगा और जहां संघर्षण होगा, वहां समस्या होगी। इस समस्या को टाला नहीं जा सकता। कर्म संघर्ष को पैदा करता है और संघर्ष स्वयं एक समस्या है। वह अनेक समस्याओं का उत्पादक है। एक बार बादशाह ने बीरबल से कहा-जिनके पीछे 'वान' शब्द लगता है, वे सारे झगड़ालू होते हैं, जैसे-पहलवान, गाड़ीवान आदि। बीरबल 252 कर्मवाद