Book Title: Karmwad
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 268
________________ सबसे बड़ा नियन्त्रण है-कर्म का बोध और कर्म का विवेक। जो इस नियन्त्रण से नियन्त्रित हैं, वे निश्चित ही बुरे कर्मों से भय खाते हैं। जो इस नियन्त्रण से बाहर हैं, वे भय नहीं खाते। ___अध्यापक ने विद्यार्थी से पूछा-बताओ, शेर से कौन जानवर नहीं डरता? बच्चा बुद्धिमान था, वह तत्काल बोला-महाशयजी! शेर से शेरनी नहीं डरती। और सभी जानवर शेर से डरते हैं, पर शेरनी शेर से कभी नहीं डरती। कर्म को जान लेने के बाद सब में प्रकंपन होता है। बस, कोई शेरनी जैसे व्यक्ति में प्रकंपन नहीं होता। ___ कर्म की सचाई को समझना ध्यान की सचाई को समझना है। अकर्म का महत्त्वपूर्ण पहलू है-देखना, जानना। अकर्म का अर्थ-न करना नहीं है। कोई भी आदमी यथार्थ की समस्याओं से मुक्त नहीं हो सकता। भूख, प्यास आदि शारीरिक समस्याएं हैं और क्रोध, अहंभाव, हीनभावं आदि मानसिक समस्याएं हैं। ये भावात्मक समस्याएं यथार्थ की समस्याएं हैं। इन समस्याओं के कारण ही सामाजिक और पारिवारिक जीवन में जटिलताएं आती हैं। इन समस्याओं का समाधान करने के लिए कर्म का दोष मिटाना, अकर्म में जाना, ध्यान करना अत्यन्त आवश्यक है। इस बात को हम स्पष्ट समझ लें कि शारीरिक समस्याओं को सुलझाने के लिए ध्यान की उतनी उपयोगिता नहीं है, जितनी उपयोगिता भावात्मक समस्याओं से निपटने के लिए है। काम, क्रोध, भय, प्रमाद, घृणा, ईर्ष्या, द्वेष, कामवासना, प्रिय-अप्रिय भाव-ये भावात्मक समस्याएं आदमी को बहुत सताती हैं। इनका तनाव दीर्घ समय तक बना रहता है। भूख आदि शारीरिक आवश्यकताओं का तनाव दीर्घ समय तक नहीं रहता। इसीलिए काम, क्रोध आदि वृत्तियां बहुत खतरनाक होती हैं। ये वृत्तियां ही कर्म में दोष उत्पन्न करती हैं। ध्यान से कर्म में शुद्धता आती है। यह पलायन नहीं है। यह जीवन की सार्थकता है। एक समय की घटना है। मन्त्री ने राजा से कहा-राजन्! आप राज्य की पूरी देखभाल नहीं कर रहे हैं, इसलिए राज्य की स्थिति बिगड़ती जा रही है। आपका अधिक समय रानियों के साथ अन्तःपुर में बीतता 258 कर्मवाद

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