________________ तब वह छटपटाता है, शोक करता है। यह भ्रान्ति अनुप्रेक्षा के द्वारा ही टूट सकती है। ___अति खुशी का परिणाम भी दूसरा होता है। कुछेक लोग इस भाषा में सोचते हैं कि अनुकूल परिस्थिति में ज्यादा खुशी प्रकट की, इसी का यह परिणाम है कि आज अत्यन्त शोक करना पड़ रहा है। इसलिए समझदार व्यक्ति अनुकूल परिस्थिति में अति हर्षित नहीं होता और प्रतिकूल परिस्थिति में अति दुःखी नहीं होता। अति हर्ष और खुशी को प्रकट करना शायद शोक और दुःख को निमंत्रण देना है। सेठ झरोखे में बैठा कांच के गिलास से पानी पी रहा था। गिलास हाथ से छूटा। नीचे जमीन पर आ गिरा, पर फूटा नहीं। दूसरों को बहुत आश्चर्य हुआ। सेठ को कुछ भी आश्चर्य नहीं हुआ। दूसरों ने सोचा, सेठ कितना भाग्यशाली है कि कांच का गिलास ऊपर से गिरा पर फूटा नहीं। सेठ ने सोचा, भाग्य डूब रहा है। अति हो गई। कांच का गिलास नहीं फूटा, इसका अर्थ है कि अब विपत्ति आने वाली है। कुछ दिन बीते। पासा पलट गया। सेठ के पास जो कुछ था, वह चुक गया। खाने के लिए भी कुछ नहीं रहा। पेट भरना मुश्किल हो गया। एक दिन बच्चे के लिए रोटी बनाई। रोटी तैयार हुई। इतने में ही एक कुत्ता आया और रोटी लेकर भाग गया। सब इस दयनीय स्थिति से दहल उठे। सेठ ने अपना संतुलन नहीं खोया। उसने सोचा, अति हो गई। वह प्रसन्न रहा। उसने कहा-अब विपत्ति के दिन बीत गए। जब सुख अन्तिम बिन्दु का स्पर्श कर लेता है, फिर वहां से दुःख का दौर शुरू हो जाता है और जब दुःख चरम सीमा का स्पर्श कर लेता है, तब सुख का स्पर्श प्रारम्भ हो जाता है। प्रसन्नता तीसरा तत्त्व है। जिस व्यक्ति ने प्रसन्नता के भाव का विकास किया है, वह न कभी हर्ष मानता है और न कभी शोक मानता है। हर्ष और शोक से परे की स्थिति है-प्रसन्नता। जिस व्यक्ति ने प्रसन्नता की अनुप्रेक्षा की है, उसने भाव-परिवर्तन कर लिया। जितने भाव हैं, उन सबके लिए भिन्न-भिन्न प्रकार की अनुप्रेक्षाएं हैं। ... अज्ञान एक समस्या है, बहुत बड़ा कष्ट है। एक विद्यार्थी जब भाव का जादू 246