________________ चक्र निरन्तर चलता रहता है। जब तक यह चक्र नहीं तोड़ा जाता, चक्रव्यूह को नहीं भेदा जाता, तब तक समस्या का समाधान नहीं हो सकता। समस्या को समाहित करने के लिए इस चक्र का भेदन अत्यावश्यक है और इस भेदन में ध्यान का बहुत महत्त्व है। यह एक उपाय है, जिसके द्वारा परिवर्तन घटित हो सकता है। ध्यान का अर्थ ही है-भावों का परिवर्तन। ध्यान का अर्थ ही है-भावों का बदल जाना। भावों का परिवर्तन होता है तो चक्रव्यूह अपने-आप टूट जाता है। भय, क्रोध, ईर्ष्या, अहंकार, कामवासना-ये सारे भाव हैं। इन भावों को बदलकर समस्या का समाधान निकालना है। परन्तु प्रश्न होता है कि भाव-परिवर्तन की प्रक्रिया क्या है? एक व्यक्ति, कारण हो या नहीं, बहुत डरता है। उसके मन में दिन-रात भय की कल्पनाएं उठती रहती हैं। अब इस अवस्था को कैसे बदलें? . दो प्रयोग हैं। एक है ध्यान का प्रयोग और दूसरा है अनप्रेक्षा का प्रयोग। एकाग्रता का अभ्यास करना, एक विचार पर, एक आलंबन पर एकाग्र होना ध्यान है, पर यह परम ध्यान नहीं है, पर्याप्त नहीं है। एकाग्रता बहुत बुरी भी हो सकती है। क्या एक निशानेबाज कम एकाग्र होता है? क्या गोली दागने वाला कम एकाग्र होता है? क्या बगुला कम एकाग्र होता है? सब एकाग्र होते हैं। परम सिद्धि है-एकाग्रता के उपयोग का विवेक। ध्यान से ऊर्जा बढ़ती है, शक्ति बढ़ती है। ऊर्जा या शक्ति का बढ़ना ही श्रेयस्कर नहीं है। ऊर्जा और शक्ति के बढ़ने से क्रोध आदि आवेग भी बढ़ सकते हैं। इसलिए यदि ऊर्जा या शक्ति का समुचित उपयोग नहीं होता है तो वे खतरनाक भी बन जाते हैं। एकाग्रता एक शक्ति है, ऊर्जा है। ध्यान का अर्थ है-उसका कब, कहां, कैसे उपयोग करना। जो व्यक्ति ऊर्जा के उपयोग की बात नहीं जानता और केवल ऊर्जा बढ़ा लेता है, वह समस्याएं पैदा करता है, अनेक कठिनाइयों को जन्म देता है। जहां ऊर्जा के उपयोग का प्रश्न आता है। वहां अनुप्रेक्षा की बात आ जाती है। अनुप्रेक्षा का सूत्र है-चिन्तन, मनन और स्वाध्याय। जो शक्ति बढ़ गई, उसका उपयोग कहां करें, कैसे करें, इसमें अनुप्रेक्षा बहुत सहायक 246 कर्मवाद