________________ करे कोई, भोगे कोई एक भाई ने पूछा-आनुवंशिकता के कारण बच्चों में अनेक रोग संक्रांत होते हैं। यह बड़ी अजीब बात है। अपराध दूसरे का और उसका परिणाम भुगतना पड़ता है संतान को। यह क्यों? ___यह प्रश्न कर्मवाद के सम्बन्ध में भी हो सकता है। लोग पूछते हैं, कर्म वैयक्तिक होता है या सामाजिक? जो कर्म सामाजिक होता है, उसका संक्रमण होता है। वैयक्तिक कर्म का संक्रमण नहीं होता। वैयक्तिकता और सामाजिकता के बीच में एक भेद-देखा है और वह है संक्रमण होना, विनिमय होना या संक्रमण न होना, विनिमय न होना। सामाजिकता में संक्रमण होता है, विनिमय होता है। जो व्यतिगत विशेषता है, चैतन्य है, उसमें न संक्रमण होता है और न विनिमय होता है। संवेदन व्यक्तिगत होता है, इसलिए उसमें न वह संक्रान्त होता है और न उसमें विनिमय होता है। प्रश्न होता है-क्या कर्म वैयक्तिक है या सामाजिक? क्या ऐसा होता है कि कर्म करे कोई और भोगे कोई? कर्मवाद का एक सिद्धान्त है, एक नियम है कि जो कर्म करता है वही उसे भोगता है। किन्तु इसके विपरीत भी देखा जाता है कि एक व्यक्ति धर्म-कर्म करता है और समूचे समाज और राष्ट्र को उसका परिणाम भुगतना पड़ता है। अच्छे कर्म का अच्छा फल और बुरे कर्म का बुरा फल। इस प्रकार की घटनाओं से भी इतिहास भरा पड़ा है। एक शासक लड़ाई लड़ता है और सारा राज्य बरबाद हो जाता है। समूचा देश कठिनाइयों में फंस जाता है। साम्राज्यलिप्सु शासक अपनी लिप्सा की पूर्ति के लिए युद्ध लड़ता है, तब सारा राज्य उस युद्ध की ज्वाला 230 कर्मवाद