________________ वह हाथ से फिसला और फूट गया। इतना बहुमूल्य तैल! मालिक शान्त था। घटना उसके सामने घटित हुई पर उसको कोई संवेदन नहीं हुआ। . ___ एक व्यक्ति कांच के गिलास में दूध पी रहा था। गिलास हाथ से छूटा और चूर-चूर हो गया। दूध गया, गिलास गया। उस गिलास से टूटने की झंकार एक घंटे तक होती रही। मालकिन उस व्यक्ति को खरा-खोटा सुनाती रही। ___लक्षपाक तैल का बर्तन फूटा। एक मिनट में झंकार बन्द हो गई। कांच का गिलास फूटा और झंकार एक घंटे तक होती रही। एक में संवेदन नहीं था, इसलिए झंकार नहीं हुई। एक में संवेदन की अधिकता रही, इसलिए झंकार होती रही। . धर्म की आराधना और ध्यान करने वाले व्यक्ति में अन्तर यह आता है कि वह घटना से प्रभावित नहीं होता। वह घटना को जान जाता है, पर संवेदन में नहीं बहता। जिसका ज्ञान जाग जाता है, उसका संवेदन सो जाता है। जिसमें ज्ञान सुप्त होता है, उसका संवेदन जाग जाता है। हम पदार्थ की उपलब्धि के साथ ध्यान को न तोलें। पदार्थ को सामने रखकर ध्यान की कसौटी न करें। धर्म को नीचे स्तर पर घसीटकर न ले जाएं। धर्म महान् तत्त्व है। धर्म और ध्यान की आराधना के द्वारा चेतना में महान् परिवर्तन घटित होता है। जैसे-जैसे धर्म की चेतना जागती है, वैसे-वैसे संवेदन की चेतना कम होती जाती है, सुखी होने की या दुःखी होने की चेतना कम होती जाती है। जैसे-जैसे धर्म और ध्यान की चेतना सुप्त रहती है, वैसे-वैसे चारों ओर दुःख की संवेदना जाग जाती है। वैसे लोग चाहे अरबपति भी क्यों न हों, थोड़े से नुकसान से तिलमिला जाते हैं। सौ रुपये खोने मात्र से उनकी नींद हराम हो जाती है। ध्यान का काम घटना को बदलना नहीं है। उसका काम है घटना से होने वाली संवेदना की चेतना को रूपान्तरित कर देना, बदल देना। यदि हम इस सचाई को समझ लेते हैं तो ध्यान की सार्थकता होती है, श्रम की सार्थकता होती है, कर्म के संस्कार क्षीण होते हैं और एक नयी चेतना का जागरण होता है। पद-चिह्न रह जाते हैं 226