________________ में विघ्न-बाधाएं आती हैं तो वह कहता है, मैं अच्छा काम करना चाहता था, पर विघ्न आ गया। अरे, तुम अपने अतीत को देखो। तुमने कितने विघ्न किए थे, कितनी अन्तराय पैदा की थी? उन सबका परिणाम आज तुम्हें भुगतना पड़ रहा है। ____ आदमी अच्छे काम प्रारम्भ करता है तो हजारों विघ्न सामने आकर खड़े हो जाते हैं। बुरे काम करो, अवरोध पैदा करने वाले कम मिलेंगे। अच्छे काम करो, अवरोध पैदा करने वाले एकत्रित हो जाएंगे। ऐसा होता है। यह संसार का क्रम है। ___हमारे संघ की घटना है। लगभग पचास वर्ष पूर्व उदयपुर के संभ्रान्त परिवार का एक दस वर्षीय बालक दीक्षित होने जा रहा था। सारे नगर में दीक्षा की बात फैल गई। हर्ष के साथ-साथ लोगों में विरोध भी उभर गया। बाजार में सब्जियां बेचने वाली औरतों ने भी विरोध के स्वर में स्वर मिला दिया। विरोध से पूर्व किसी को यह ज्ञात भी नहीं था कि वह बालक उदयपुर में बस रहा है, जी रहा है। किन्तु जब दीक्षा के लिए वह तैयार हुआ तब विरोध का स्वर प्रबल हुआ और एक कोने में अज्ञात बालक सारे नगर में ज्ञात हो गया। विरोध करने वालों का उस बालक से न कोई पारिवारिक संबंध था और न कोई लेन-देन का सम्बन्ध और न कोई व्यावसायिक सम्बन्ध ही था। फिर भी उनका विरोध था कि वह दीक्षित न हो। ऐसी स्थितियों की कोई तर्क-संगत व्याख्या नहीं हो सकती। इससे एक ही निष्कर्ष निकलता है कि जहां अच्छाई की बात आती है, वहां अवरोध पैदा होता है। ध्यान करने वाले व्यक्ति में जब विपत्ति आती है, जब उसे सोचना चाहिए कि मैंने अतीत में न जाने कितने अवरोध पैदा किए होंगे, दीवारें खड़ी की होंगी कि उनका परिणाम आज मुझे भुगतना पड़ रहा है। आदमी में मूर्छा का चित्त, आवरण का चित्त, अन्तराय का चित्त होता है। ऐसी स्थिति में कैसे कल्पना की जाए कि अतीत का परिणाम न आए, धार्मिक व्यक्ति में विपत्ति न आए? यदि ऐसा चिन्तन किया जाता है तो यह सचाई पर पर्दा डालने जैसी बात होती है। ऐसे चिन्तन से धर्म और ध्यान के प्रति विमुखता का भाव पैदा होता है। चिन्तन यह होना चाहिए पद-चिह्न रह जाते हैं 227