________________ गीत गाने वाली का भी दोष है और लिखने वाले का भी दोष। दोनों ओर से दोष आ रहा है। सामाजिक जीवन के बहुत सारे व्यवहार और कार्य दो से सम्बन्धित होते हैं। इसी बिन्दु पर हमने आचरण और व्यवहार में एक भेद-रेखा खींची थी। आचरण होता है व्यक्तिगत और व्यवहार होता है सामाजिक। जहां दो नहीं होते, वहां व्यवहार नहीं होता। व्यवहार दूसरे के प्रति होता है और आचरण एकनिष्ठ होता है, स्वगत होता है। व्यवहार सदा द्विष्ठ होगा। उसके लिए कम-से-कम दो चाहिए। पूरा सामाजिक जीवन दो से जुड़ा हुआ है। द्वन्द्व के बिना व्यवहार नहीं होता। समाज का जीवन नहीं होता। व्यवहार का अर्थ होता है भेद। भेद का अर्थ है. द्वैत। जहां दो हैं, वहां भेद होगा और वहां व्यवहार होगा। किन्तु कर्म दो से संबंध नहीं रखता। यदि वह दो से संबंधित होता है तो वह वैयक्तिक नहीं हो सकता। किन्तु व्यवहार में देखा जाता है कि कर्म सबसे संबंध रखता है। इसलिए हमें एक भेदरेखा खींचनी होगी। ___ दो प्रकार के कारण होते हैं-उपादान कारण और निमित्त कारण। उपादान की दृष्टि से कर्म नितांत वैयक्तिक होता है। हम जो यह कहते हैं कि अपना किया हुआ स्वयं अपने को भुगतना होगा, यह उपादान की दृष्टि से कहा है। कर्म का उपादान व्यक्ति स्वयं होता है। व्यक्ति स्वयं कर्म करता है और स्वयं ही उसे भुगतता है। यदि वह उपादान नहीं होता तो उसे भोगना नहीं पड़ता। निमित्त कारण वैयक्तिक नहीं होता। वह सामूहिक या सामाजिक होता है। सौ आदमी चिलचिलाती धूप में यात्रा कर रहे हैं। सबको गर्मी का अनुभव होता है, पीड़ा होती है। किसी एक को नहीं, सबको कष्ट होता है। क्योंकि यह निमित्त है और निमित्त सामुदायिक होता है। इसी प्रकार संवेदन वैयक्तिक होता है और परिणाम सामुदायिक। कर्म किया। उसको जब भुगतना पड़ता है, तब कर्म का फल या संवेदन वैयक्तिक होता है। व्यक्ति संवेदन करता है, पर परिणाम सामाजिक हो सकता है। एक घटना घटी। उसका परिणाम अनेक व्यक्तियों को भुगतना पड़ता है। वांछनीय या अवांछनीय, प्रिय या अप्रिय, कोई स्थिति बनी, 232 कर्मवाद