________________ कर्मवाद को जानने में एक कदम आगे बढ़ा जा सकता है। जीन हमारे स्थूल शरीर का अवयव है और कर्म हमारे सूक्ष्मतर शरीर का एक अवयव है। दोनों शरीर से जुड़े हुए हैं-एक स्थूल से और दूसरा सूक्ष्मतर शरीर से। यह सूक्ष्मतर शरीर कर्मशरीर है। जैसे विज्ञान की निरन्तर नयी-नयी खोजें होती हैं, मुझे विश्वास है कि एक दिन यह तथ्य भी अनुसंधान में आ जाएगा कि जीन केवल माता-पिता के गुणों या संस्कारों का ही संवहन नहीं करते, किन्तु ये हमारे किए हुए कर्मों का भी प्रतिनिधित्व करते हैं। ये जीन कर्म से भी जुड़े हुए हैं। अभी तक यह तथ्य खोजा नहीं गया, पर बहुत सम्भव है कि यह शीघ्र खोज लिया जाएगा। __हम सूक्ष्म चर्चा में चले गए। ध्यान-साधना के लिए सूक्ष्म चर्चा आवश्यक होती है। ध्यान सूक्ष्म की खोज है। स्थूल बुद्धिवाला आदमी स्थूल बात में अटका रह जाता है। बालक स्थूल बात पर अटक सकता है। 'बाल' शब्द के दो अर्थ होते हैं-छोटी अवस्था वाला और अज्ञानी। जिसका ज्ञान विकसित नहीं होता, वह भी बाल है। 'बाल' व्यक्ति सूक्ष्म की खोज में नहीं जा पाता। बच्चा मिठाई चुरा रहा था। बहन बोली-भैया! तुम मिठाई चुराते हो, अम्मा तो नहीं देख रही हैं, पर भगवान तो देख रहे हैं। भगवान से तो डरो। बच्चा बोला-क्या फर्क पड़ता है! भगवान् भले ही देखें। वे अम्मा को कहने नहीं आते। फिर मुझे चिन्ता ही क्या है? ___ बच्चा स्थूल को ही. पकड़ सकता है, सूक्ष्म को नहीं। जिस व्यक्ति का ज्ञान परिपक्व और विकसित हो गया है, जिसकी चेतना ध्यान के द्वारा परिष्कृत हो गई है, वह सूक्ष्म सत्यों और सूक्ष्म नियमों की खोज करेगा। वह नियति को, मूल नियमों को पकड़ेगा। . कर्म एक नियति है, नियम है। कर्म के द्वारा अतीत को पढ़ा जा सकता है और भविष्य को समझा जा सकता है। कर्म के दो विभाग हो जाते हैं। एक है पौद्गलिक या पारमाणविक कर्म और दूसरा है चैतसिक कर्म। पारिभाषिक शब्दावली में एक है द्रव्य कर्म और दूसरा है भाव कर्म। कर्म परमाणुओं का संग्रहण और संश्लेषण होता है भावकर्म के द्वारा। प्राणी का भाव और भाव के द्वारा अर्जित __ अतीत को पढ़ो : भविष्य को देखो 206