________________ भारतीय नाट्य एकेडेमी के अध्यक्ष मंगल सक्सेना आए थे। उन्होंने ध्यान के विषय में जिज्ञासा करते हुए पूछा-ध्यान का प्रयोजन क्या है? चर्चा चली। चर्चा के बाद मैंने कहा-ध्यान का प्रयोजन है कर्म का निर्जरण, कर्म का क्षय, संस्कारों का निर्जरण। प्रत्येक प्राणी अपने भावों और विचारों के द्वारा कर्मपरमाणुओं का विशाल भण्डार अर्जित कर लेता है। उस भण्डार को खाली करना, क्षीण करना, ध्यान का मुख्य प्रयोजन है। मंगल सक्सेना बोले-बात समझ में आ गई। आज भी अन्यान्य ध्यान पद्धतियां चलती हैं, उनका लक्ष्य है बीमारी मिट जाए, नींद अच्छी आ जाए, तनाव मिट जाए आदि-आदि। यह समस्या का स्थायी समाधान नहीं है। भीतर से संचित मूल कारणों का, संस्कारों का क्षय करना ही समस्या का स्थायी समाधान है। ___ बीमारी का मिटना, तनाव का मिटना आदि अस्थायी उपचार हैं। संस्कार भीतर में विद्यमान हैं। वे जब तक पूर्णतया नष्ट नहीं हो जाते, तब तक समय-समय पर उभरते रहते हैं, उपशान्त होते रहते हैं, पर कभी नष्ट नहीं होते। इन संस्कारों को क्षीण करना ही ध्यान-साधक का ध्येय होता है। यही ध्यान का प्रयोजन है। जब तक मूल कारण का शोधन नहीं होता, संस्कारों का शोधन नहीं होता, तब तक स्थायी उपचार नहीं होता, समस्या का स्थायी समाधान नहीं होता। हमें बाहरी और भीतरी-दोनों परिस्थितियों को समझना जरूरी है। हमें बाहरी परिस्थितियों को भी सुधारना है, पर वहां रुकना नहीं है। ध्यान का प्रयोजन केवल गहरी नींद का आ जाना, रक्तचाप का संतुलन हो जाना, मधुमेह की बीमारी का मिट जाना या मानसिक तनाव का कम हो जाना नहीं है। ध्यान का मूल प्रयोजन है-इन सबको पैदा करने वाले कारणों को समाप्त कर देना। अर्थात् कर्म का शोधन करना, संस्कारों का क्षय करना। जब इस बिन्दु तक पहुंच जाते हैं, तब ध्यान की सार्थकता स्पष्ट प्रतीत होने लग जाती है। पर्दे की पीछे कौन? 207 /