________________ अतीत को पढ़ो : भविष्य को देखो ध्यान का प्रयोजन है स्थूल से सूक्ष्म की ओर जाना। सूक्ष्म सत्यों और नियमों की खोज हमारे ज्ञान का संवर्धन करती है और उससे आदमी का आचरण और व्यवहार भी बदलता है। नियमों को जानना बहुत आवश्यक है। ध्यान नियमों को जानने का महत्त्वपूर्ण प्रयोग है। नियमों को जानने का जिन लोगों ने प्रयत्न किया है, उन्होंने सूक्ष्मता का आलंबन लिया है, फिर चाहे वे नियम विज्ञान के हों या अध्यात्म के हों या अन्य किसी के। नियमों की जानकारी चैतसिक विकास के द्वारा भी की जा सकती है और सूक्ष्म यंत्रों के द्वारा भी की जा सकती है। सूक्ष्म को जानने के लिए सूक्ष्म का अवलंबन लेना जरूरी है। कर्म का सिद्धान्त बहत सूक्ष्म है। उसके नियमों को समझने में बहुत कठिनाई होती है। स्थूल बुद्धि से वे नियम समझ में नहीं आ सकते। आज के आनुवंशिकता के सिद्धांत ने कर्म-सिद्धान्त को समझने में सुविधा दी है और प्रवेश द्वार खोला है। जीन आनुवंशिक गुणों के संवाहक होते हैं। व्यक्ति-व्यक्ति में जो भेद दिखाई देता है, वह जीन के द्वारा किया हुआ भेद है। प्रत्येक विशिष्ट गुण के लिए विशिष्ट प्रकार का जीन होता है। ये आनुवंशिकता के नियम कर्मवाद के संवादी नियम हैं। कर्मवाद इनसे एक चरण और आगे है। कर्म परमाणु का संवहन करते हैं। व्यक्तिगत भेद का मूल कारण है कर्म। कम्मओणं विभत्ति भावं जणयई-सारे विभेद कर्मकृत होते हैं। प्रत्येक जैविक विशेषता के लिए विशेष कर्म उत्तरदायी होता है। तुलनात्मक दृष्टि से देखा जाए तो आनुवंशिकता, जीन और रासायनिक परिवर्तन-ये तीनों सिद्धान्त कर्म के ही सिद्धान्त हैं। आनुवंशिकता के सिद्धान्त की खोज के आधार पर 208 कर्मवाद