________________ घटनाएं व्याख्यात नहीं हो सकतीं।' दो बातें हैं। एक है घटना और दूसरी है कर्म की वासना। घटना सामने घटित होती है, वासना पीछे रहती है। हम घटना की सही व्याख्या करना चाहते हैं, पर जब तक वासना की व्याख्या नहीं होती, तब तक घटना की पूरी व्याख्या नहीं की जा सकती। ____ मृत्यु एक घटना है। न जाने कितने व्यक्ति अकाल में ही मृत्यु के ग्रास बन जाते हैं। एक आदमी चालीस वर्ष की अवस्था में ही मर गया, पर इस अवस्था में क्यों मरा, इसकी व्याख्या वासना की व्याख्या किए बिना नहीं की जा सकती। उस मृत्यु के पीछे भी एक वासना है। यदि उसे समझ लिया जाता है तो अकाल-मृत्यु की बात भी सहज ही समझ में आ जाती है। प्रत्येक घटना के साथ, फिर चाहे वह बीमारी हो, चिन्ता हो, मोह हो, वासना जुड़ी हुई होती है। घटना सामने होती है, वासना सामने नहीं होती। घटना के आधार पर जो व्याख्या की जाती है, वह पचास प्रतिशत सही होती है तो पचास.प्रतिशत सही नहीं होती। हम दोनों को पकड़ नहीं पाते। हमें इतना मात्र ज्ञात होता है कि ऐसा हो गया। पर हम नहीं जान पाते कि ऐसा क्यों हुआ? सब अकाल-मृत्यु से क्यों नहीं मरते? अमुक ही अकाल मृत्यु से क्यों मरा? इसके पीछे वासना बराबर काम करती है। ध्यान का प्रयोजन है उस अदृश्य कारण तक पहुंचना। वह है चेतना का सूक्ष्म स्तर। यह अन्तिम सचाई है। शरीर के साथ काम करने वाली चेतना स्थूल होती है। इस चेतना को पार कर जब हम भीतर में जाते हैं, तब विद्युत् शरीर के साथ सम्पर्क होता है। यह सूक्ष्म शरीर है जिसके द्वारा हमारा स्थूल शरीर संचालित होता है। उसको पार कर जब हम और गहरे में जाते हैं, तब हमारा संपर्क होता है सूक्ष्मतर शरीर से। वह है कर्म शरीर। यह चेतना हमारे आचार, व्यवहार और विचार का संचालन करती है। ध्यान का प्रयोजन है कर्म शरीर के साथ काम करने वाली चेतना तक पहुंच जाना और उन कर्म परमाणुओं को समझ लेना जो हमारी सारी घटनाओं के लिए जिम्मेदार हैं। उनको समझ लेना ही पर्याप्त नहीं है, उनका क्षय करना भी जरूरी है। 206 कर्मवाद