________________ निकाल दिया। ऐसा आचरण एक-दो बार नहीं, तीन बार किया। संन्यासी आता गया और तिरस्कृत होकर लौटता गया। अन्त में गृहपति ने संन्यासी से क्षमायाचना करते हुए कहा-'क्षमा करें! मैंने बहुत दुर्व्यवहार किया आपके साथ। मुझे वास्तव में यह प्रतीत हो गया कि आपके चिरपरिचित मित्र मर गए हैं। यदि आपका मित्र क्रोध नहीं मरता तो आप ऐसा व्यवहार कभी नहीं कर पाते। संन्यासी बोला-'महाशय! मैंने कौन-सी बड़ी बात की? आपने बार-बार बुलाया, मैं आ गया। ऐसा तो एक कुत्ता भी करता है। उसे दिन में कितनी बार दुत्कारा जाता है, फिर भी वह आना-जाना नहीं छोड़ता। पर एक फर्क है। जब काम-क्रोध मर जाते हैं, तब आदमी का व्यवहार बदल जाता है, चेतना बदल जाती है। कुत्ते में सत्कार-तिरस्कार की चेतना नहीं होती। उसमें कुछ बदलता नहीं। यह मर्म तुमने नहीं समझा। चेतना में परिवर्तन घटित होना, चेतना को प्रभावित करने वाली कर्मवर्गणा का बदल जाना, उन संस्कारों का क्षीण हो जाना, यह महत्त्वपूर्ण घटना है। हम केवल व्यवहार को देखते हैं, किन्तु व्यवहार के पीछे उसको प्रभावित करने वाली जो चेतना है, उसको नहीं देखते। जब तक वह चेतना नहीं बदलती, संस्कार नहीं बदलते, तब तक उसका कोई प्रभाव नहीं होता। मुझे प्रतीत होता है कि धर्म करने वालों की चेतना अभी बदली नहीं है। यदि चेतना का रूपान्तरण होता है तो यह प्रश्न ही खड़ा नहीं हो सकता कि धर्म करने वाला दुःखी होता है और न करने वाला सुखी होता है। ईमानदार आदमी घाटे में रहता है और बेईमान नफे में रहता है। ऐसा प्रश्न कभी उठ नहीं सकता। यह प्रश्न तभी उठता है जब चेतना का रूपान्तरण नहीं होता। हमने धर्म को स्थूल रूप में पकड़ा है, धर्म के मर्म का स्पर्श नहीं किया। धर्म आन्तरिक प्रक्रिया है संस्कारों को क्षीण करने की। ध्यान धर्म का ही एक घटक है। वह शक्तिशाली प्रक्रिया है जिसके द्वारा आन्तरिक चेतना के साथ हमारा सम्पर्क स्थापित होता है और तब कर्म क्षीण होते हैं। ___एक धार्मिक व्यक्ति है। उसके पुत्र का वियोग हो गया। एक धार्मिक व्यक्ति है, उसकी पत्नी की मृत्यु हो गई। एक धार्मिक महिला है, उसके 224 कर्मवाद