________________ स्वयं स्त्री करा रही है। लड़का पैदा होता है तब सारे घर में खुशियां मनाई जाती हैं, थाली बजाई जाती हैं। जब लड़की पैदा होती है तब घर में उदासी छा जाती है और छाज पीटा जाता है। यह सब महिलाओं द्वारा संपन्न होता है। वे नहीं जानतीं कि वे स्वयं अपनी जाति की अवज्ञा कर रही हैं। स्त्री स्त्री की अवज्ञा कर रही है। नारी नारी की अवज्ञा करे, अपने सजातीय की अवज्ञा करे, इससे बड़ा आश्चर्य क्या हो सकता है? सास दहेज के प्रति जितनी जागरूक रहती है, उतना कोई सदस्य नहीं रहता। स्त्री के द्वारा स्त्री की हत्या अथवा स्त्री के द्वारा स्त्री का अपमान इसीलिए होता है कि उसके साथ अज्ञान जुड़ा हुआ है। दो प्रकार की मनोवृत्तियां हैं। एक है मौलिक मनोवृत्ति और एक है अर्जित आदत। आदमी की मौलिक मनोवृत्ति को नहीं बदला जा सकता, पर अर्जित आदतों को बदला जा सकता है। मौलिक मनोवृत्तियों का रूपान्तरण भी किया जा सकता है, पर वह होता है कठोर साधना के पश्चात् / परन्तु वर्जित आदतों से, सरल-साधना के माध्यम से, छुटकारा पाया जा सकता है। यदि अर्जित आदतों में परिवर्तन नहीं आता तब धर्म की आराधना और ध्यान की साधना करने का अर्थ शून्य हो जाता है। एक शिविरार्थी ने बताया कि ध्यान-शिविर की साधना से उसकी ग्यारह अर्जित आदतें छूट गईं। यह ध्यान की एक निष्पत्ति है। ध्यान से होने वाला परिवर्तन आन्तरिक होता है, स्थायी होता है। ध्यान से भीतर का जागरण घटित होता है और जब आदमी भीतर में जाग जाता है तब रूपान्तरण घटित होने लग जाता है। अम्म और निम्म पिता-पुत्र थे। वे उज्जयिनी के निवासी ब्राह्मण थे। पिता-पुत्र दोनों दीक्षित हो गए। पुत्र उच्छृखल वृत्ति का था। वह किसी की बात नहीं मानता था। दूसरे मुनि उससे परेशान थे। आचार्य ने उनको गण से अलग कर दिया। वे दोनों दूसरे आचार्य के गण में सम्मिलित हो गए। वहां भी पुत्र के व्यवहार से सारे ऊब गए। वहां से भी उन्हें निकाल दिया गया। वे तीसरे, चौथे और पांचवें गण में गए। पर सर्वत्र तिरस्कृत हुए। तिरस्कार का एकमात्र कारण था पुत्र-मुनि 164 कर्मवाद