________________ एक दिन का, प्रातःकाल उठते हैं तब से लेकर सोते हैं तब तक का पूरा लेखा-जोखा रखें। उठते ही पहले क्षण में जो विचार आएं, उन्हें नोट करें और फिर पूरे दिन में क्या-क्या सोचा, क्या-क्या किया, इसको नोट करें। फिर उनको देखें, पता चलेगा कि आपने अतीत का जीवन कितना जीया और वर्तमान कितना जीया। यह भी ज्ञात हो जाएगा कि भविष्य का जीवन कितना जीया और वर्तमान का जीवन कितना जीया। यदि आंकड़े निकाले जाएं तो यह निश्चित रूप से ज्ञात हो जाएगा कि आदमी मुश्किल से घंटा, आधा घंटा वर्तमान का जीवन जीता है, शेष तेईस घंटे वह अतीत या भविष्य का जीवन जीता है। आदमी को एक ओर स्मृतियां घेरे हुए हैं और दूसरी ओर कल्पनाएं घेरे हुए हैं। अतीत की स्मृतियां और भविष्य की कल्पनाएं-दोनों साथ-साथ चलती हैं। आदमी निरंतर स्मृतियों से घिरा रहता है। वह कुछ भी करे, स्मृतियों के घेरे को तोड़ नहीं पाता। इन स्मृतियों के सातत्य से वर्तमान खो जाता है, छूट जाता है। स्मृतियों की श्रृंखला इतनी लंबी है कि बेचारा वर्तमान के नीचे दब जाता है। उसका कहीं पता नहीं चलता। कर्तव्य का भी पता नहीं चलता। आदमी सहसा कह देता है-भई! मैं तो भूल गया। वह गलत प्रयोग है। आदमी भूलता कहां है! यदि हम सूक्ष्मता से देखें तो पता लगेगा कि आदमी भूलता नहीं, किन्तु दूसरी स्मृति उसे दबोच लेती है और पहली बात नीचे दब जाती है। आदमी भूलता नहीं, किन्तु दूसरी स्मृति के वशीभूत हो जाता है। यदि आदमी स्मृति-संयम का अभ्यास कर लेता है तो वह वर्तमान में जी सकता है। कल्पना का संयम करने पर वर्तमान में जीया जा सकता है। जो वर्तमान में जीना सीख लेता है, वह अनेक समस्याओं से बच जाता है। शिविर में भाग लेने वाले, ध्यान करने वाले कहते हैं-बड़ा आनन्द आता है। इस बात पर वे लोग विश्वास नहीं करते जो ध्यान नहीं करते। जीवन के पग-पग पर आनन्द है, पर वह स्मृतियों के बोझ से दबा रहता है। कल्पना के नीचे दबा रहता है। ध्यान-काल में स्मृतियों और कल्पनाओं को उभरने का मौका नहीं मिलता। उसमें वर्तमान में जीने का अवसर मिलता है, तब पता चलता है कि जिस आनन्द की खोज वर्तमान की पकड़ 13