________________ सोना बन गया। हमारे आनन्द पर भी दो मुख्य आवरण हैं। एक है कल्पना का आवरण और दूसरा है स्मृति का आवरण। ये दोनों आवरण जब हट , जाते हैं तब आनन्द की अनुभूति होने लग जाती है। मैं नहीं कहता कि कल्पना और स्मृति सर्वथा अनावश्यक हैं। इनका भी जीवन में उपयोग है। स्मृति के बिना जीवनयात्रा नहीं चलती और कल्पना के बिना जीवन का विकास नहीं होता। सामाजिक जीवन को चलाने के लिए तथा उसको विकासित करने के लिए स्मृति और कल्पना आवश्यक हैं। जितनी आवश्यक हैं उतनी उपयोगी भी हैं। पर आज का आदमी अनावश्यक स्मृति और कल्पना में अपना जीवन बिता रहा है। अनावश्यक स्मृति और कल्पना का काल बहुत छोटा होता है। अनावश्यक स्मति और कल्पना में ही अधिक काल बीत रहा है। इसीलिए स्मृति की पकड़ छूट जाती है। जब वर्तमान की पकड़ मजबूत होती है तब अतीत और भविष्य की पकड़ ढीली हो जाती है। प्रेक्षा-ध्यान में स्मृति और कल्पना का भी उपयोग है और वह कांटे से कांटा निकालने के लिए। कांटा चुभना एक बात है और उस कांटे को दूसरा कांटा चुभाकर निकालना दूसरी बात है। चढ़ने की और उतरने की सीढ़ियां दो नहीं होती, एक ही होती हैं। सीढ़ियों में अन्तर नहीं होता, अन्तर होता है पैरों के स्नायुओं में। चढ़ते समय पैरों के स्नायुओं की क्रिया एक प्रकार की होती है और उतरते समय दूसरे प्रकार की होती है। आरोहण और अवरोहण की क्रिया में अन्तर आ जाता है। क्या हंसने की और रोने की आंखें दो होती हैं? नहीं, आदमी जिन आंखों से हंसता है, उन्हीं आंखों से रोता है। पर क्रिया में अन्तर आ जाता है। एक उलझाने वाली क्रिया होती है और एक सुलझाने वाली क्रिया होती है। एक स्मृति और कल्पना उलझा देती है, उन्हें दूसरी स्मृति और कल्पना सुलझा देती है। सुलझाने वाली स्मृति और कल्पना वर्तमान की ओर ले जाती है। स्मृति-संग्रह और कल्पना-संयम-दोनों साथ-साथ होने चाहिए। इसीलिए हमने प्रेक्षा के साथ अनुप्रेक्षा को जोड़ा है। इससे स्थूल से सूक्ष्म की ओर प्रस्थान हो सकता है। ध्यान का प्रयोग है-स्थूल से सूक्ष्म की ओर जाना। स्थूल से सूक्ष्म वर्तमान की पकड़ 185