________________ प्रतिक्रमण हमारा शरीर अनेक नियमों से बंधा हुआ है और अनेक रहस्यों से भरा हुआ है। इस शरीर में अनगिनत रहस्य हैं। उनको जानना है। हमारी यात्रा स्थूल से सूक्ष्म की ओर हो। हमें स्थूल से यात्रा करनी है और पहुंचना है सूक्ष्म तक। हमें चलते चलना है। जो स्थूल में अटक जाता है, वह भटक जाता है। वह कहीं का. नहीं रहता। आज आदमी की दृष्टि स्थूल को पकड़ने वाली बनी हुई है। वह स्थूल को देख लेता है, सूक्ष्म उसकी पकड़ में नहीं आता। इसका कारण है कि वह सूक्ष्म तक जाने का अभ्यास नहीं करता, प्रयोग नहीं करता। ___मैं स्थूल से सूक्ष्म की यात्रा पर आपको ले चलता हूं। यह शरीर स्थूल है। यह सूक्ष्म कोशिकाओं-बायोलॉजिकल सेल्स-से निर्मित है। लगभग 60-7 खरब कोशिकाएं हैं। हम इन्हें जैन दर्शन के इस प्रतिपादन के संदर्भ में समझें कि सूई की नोक टिके, उतने-से स्थान में निगोद के अनन्त जीव समा सकते हैं। निगोद वनस्पति का एक विभाग है। यह सूक्ष्म रहस्यपूर्ण बात है। पर आज का विज्ञान भी अनेक सूक्ष्मताओं का प्रतिपादन करता है। शरीर में खरबों कोशिकाएं हैं। उन कोशिकाओं में होते हैं गुणसूत्र। प्रत्येक गुणसूत्र दस हजार 'जीन' से बनता है। वे सारे संस्कार-सूत्र हैं। हमारे शरीर में छियालीस क्रोमोसोम होते हैं। वे बनते हैं 'जीन' से, संस्कार-सूत्रों से। संस्कार-सूत्रों से एक क्रोमोसोम बनता है। संस्कार-सूत्र सूक्ष्म है, 'जीव' सूक्ष्म है। आज का शरीर-विज्ञान मानता है कि शरीर का महत्त्वपूर्ण घटक है-'जीन'। यह संस्कार-सूत्र है। यह अत्यन्त सूक्ष्म है। प्रत्येक 'जीन' में साठ लाख आदेश लिखे हुए होते हैं। कल्पना करें इस सूक्ष्मता की। 172 कर्मवाद