________________ नाड़ी-संस्थान में परिवर्तन करता है। नाड़ी-संस्थान में परिवर्तन होता है तो आन्तरिक व्यवहार में परिवर्तन होता है। एक चक्र चलता है उद्दीपकों से लेकर आन्तरिक वातारण तक। ___ काव्यशास्त्र में उद्दीपकों की बहुत चर्चा है। वे स्थायीभाव, सात्विकभाव और संचारीभाव के नाम से पहचाने जाते हैं। ___बाहर के उद्दीपक हमारे आन्तरिक वातावरण को उद्दीप्त कर देते हैं। एक आदमी बिलकुल शांत बैठा है। किसी ने आकर कहा-अरे बेवकूफ! यहां क्यों बैठे हो? बस, शांति भंग हो जाती है। जो इतने समय तक शांत लग रहा था, अब वह ज्वालामुखी बन गया। यह ज्वाला कहां से आयी? आग कहां से आयी? एक शब्द ने, अप्रिय वचन ने शीतलप्रसाद को ज्वालाप्रसाद बना दिया। एक ही शब्द से उसकी शीतलता समाप्त हो गई। भीतर क्रोध तो था, पर उद्दीपन के अभाव में वह प्रकट नहीं हो रहा था। उद्दीपन मिला और वह प्रकट हो गया। सारे आवेग सदा प्रकट नहीं रहते। यदि वे प्रकट रहें तो आदमी जी नहीं सकता। आवेगों में वह कैसे जी सकता है? आवेग शांत हों तभी आदमी शांति से जी सकता है। आवेगों के अस्तित्व में जीवन दूभर बन जाता है। जब उद्दीपक आते हैं तब सारा वातावरण गर्म हो जाता है, ज्वालामुखी फूट पड़ता है। व्यवहार बदल जाता है। आकृति बदल जाती है। मुद्रा बदल जाती है। शांत अवस्था की आकृति और मुद्रा भिन्न होती है। जैसे ही क्रोध आता है, आंखें लाल हो जाती हैं, भृकुटि तन जाती है, चेहरा तमतमा जाता है और समूचा शरीर कांप उठता है। प्रकृति के साथ-साथ आकृति बदल जाती है। आकृति बदलती है तो प्रकृति बदल जाती है और प्रकृति बदलती है तो आकृति बदल जाती है। दोनों बदल जाते हैं। यह कैसे होता है? उद्दीपन के साथ वातावरण बदलता है और वातावरण के साथ व्यवहार बदलता है। बाह्य व्यवहार बदलता है तो आन्तरिक व्यवहार भी बदल जाता है। गुस्सा आया। आदमी गाली बकने लगा। आगे बढ़ा तो हाथ उठ गए। मारने दौड़ा। यह परिवर्तन क्यों आया व्यवहार में? मनोवैज्ञानिकों ने इस पर प्रचुर मीमांसा की है कि मनुष्य के व्यवहार और आचरण का परिवर्तन होता है बाह्य वातावरण. प्रतिबद्धता का प्रश्न 133