________________ के द्वारा। यह एक तथ्य है बाह्य वातावरण। यह मनुष्य के व्यवहार और आचरण को बदल देता है। हम इस तथ्य की उपेक्षा नहीं कर सकते। - एक अच्छे घराने का व्यक्ति था। उसे कोई ऐसे वातावरण का संयोग मिला कि वह शराब पीने लग गया। धीरे-धीरे शराब पीने की आदत बन गई। वह प्रतिदिन शराब के नशे में धुत्त रहता। जब व्यसन आता है तब आदमी में दूसरों को कहने की क्षमता कम हो जाती है। निर्लज्जता होती है तो वह कह देता है, अन्यथा कहने में संकोच करता है। उस व्यक्ति का लड़का सिगरेट पीने लगा। उसका पोता बीड़ी पीने लग गया। एक दिन दादा ने अपने पोते को बुलाकर कहा-'बेटे! बीड़ी पीना अच्छा नहीं है, बुरी बात है। यह व्यसन है। अभी इसकी आदत डाल लोगे तो आगे दुःख भोगना पड़ेगा। इस व्यसन से स्वास्थ्य भी बिगड़ता है।' पोता बच्चा ही था, उसने सुना। दो क्षण मौन रहा। फिर वह बोला-'दादा! शराब पीना ज्यादा बुरा है या बीड़ी पीना?' यह सुनकर दादा अवाक् रह गया। बच्चे को क्या उत्तर दे? एक शब्द ने इतना असर किया कि उसकी शराब छूट गई। हम शब्द से, रूप से, गंध से, रस से और स्पर्श से प्रभावित होते हैं। वातावरण का सर्जन करने वाले जितने घंटक तत्त्व हैं उन सबसे हम प्रभावित होते हैं। सारी घटनाएं हमें प्रभावित करती हैं। लड़ाई हमें प्रभावित करती है। मनुष्य का व्यवहार उसकी स्वतंत्र इच्छा और प्रेरणा से संचालित नहीं है। उस पर वातावरण का गहरा असर होता है, परिस्थिति का असर होता है। ऐसी बहुत कम घटनाएं होंगी, ऐसे कम आदमी होंगे, जिन पर वातावरण या परिस्थिति का प्रभाव न पड़ता हो, जो इन दोनों के प्रभावों से मुक्त हों और इनसे अलग हटकर अपना काम करते हों। साधक के लिए भी यह निर्देश-सूत्र है कि जब तक साधना परिपक्व न हो जाए, तब तक उसको वातावरण से बचना चाहिए, परिस्थिति से बचना चाहिए। एक शिविरार्थी मेरे पास आकर बोला-'स्त्री और पुरुष में इतना भेद क्यों किया जाए? स्त्रियों को अलग और पुरुष को अलग क्यों 134 कर्मवाद