________________ इतना विपन्न और इतना दरिद्र है.से बंधा हुआ चले और अपने अस्तित्व का अनुभव ही न करे। यह बहुत दयनीय स्थिति बन गई। यह स्थिति इसलिए बनी है कि व्यक्ति का दृष्टिकोण और चिन्तन एकांगी हो गया। उसने सच्चाई को पकड़ा पर एकांगी रूप में पकड़ा। उसको समग्रता से नहीं पकड़ा। जब तक समग्रता की दृष्टि से सत्य को नहीं पकड़ा जाता, तब तक पकड़ में आने वाला सत्य होता ही नहीं। तब तक वास्तविकता हस्तगत नहीं होती। ___ हमारे दो मस्तिष्क हैं-एक है कंडिशन्ड माइंड और दूसरा है सुपर माइंड। एक है चेतन मन और दूसरा है अचेतन मन। मनोविज्ञान की भाषा में दो मस्तिष्क हैं-एक है एनीमल और दूसरा है ह्यूमन माइंड। ये दो-दो विधाएं हैं। मनुष्य में जो एनीमल माइंड-पाशविक मस्तिष्क है, उसमें आदिकालीन संस्कार भरे पड़े हैं। उनमें क्रोध, घृणा, यौवनवासना, ईर्ष्या-ये सारे संस्कार भरे हुए हैं। इन सारे आवेगों का उत्तरदायी है मनुष्य का पशु-मस्तिष्क या एनीमल माइंड, आदिम मस्तिष्क। दूसरा मस्तिष्क, जो बाद में विकसित हुआ है, उस में उदात्त भावनाएं भरी हुई हैं। चेतन मस्तिष्क स्थूल मन है, जो शरीर के साथ काम कर रहा है और यह बुरी भावनाओं का भंडार है। दूसरा है अचेतन मन जो शक्तियों का भंडार है। कर्मशास्त्र या अध्यात्म की भाषा में कहा जा सकता है-एक है विशुद्ध चेतना वाले मस्तिष्क की वह परत तो विशुद्ध चेतना का प्रतिनिधित्व करती है और एक है अशुद्ध चेतना की वह परत जो कषायी चेतना का प्रतिनिधित्व करती है। हमारी चेतना दो रूपों में काम कर रही है। एक है कषाययुक्त चेतना का कार्य और दूसरा है कषायमुक्त चेतना का कार्य, निर्मल चेतना का कार्य। इन्हें हम जैन तत्त्व की पारिभाषिक शब्दावली में कह सकते हैं-एक है क्षायोपशंमिक मस्तिष्क और दूसरा है औदयिक मस्तिष्क। कंडिशन्ड माइंड को औदयिक मस्तिष्क कह जा सकता है और सुपर माइंड को क्षायोपशमिक मस्तिष्क कहा जा सकता है। औदयिक मस्तिष्क कर्म के उदय के साथ चलता है, अनेक शर्तों से बंधा हुआ चलता है। यह चेतना कषाय से बंधी अतीत से बंधा वर्तमान 156