________________ नास्तिकता की दुहाई देते रहे, पर जीवन के अन्तिम क्षणों में पूर्ण आस्तिक बन गए। बड़े भाई का दृष्टिकोण. बदल गया, आचरण और व्यवहार बदल गया और उसके व्यक्तित्व का पूरा रूपान्तरण हो गया। छोटे भाई ने सोचा-राज्य मिलने वाला है, अब चिन्ता ही क्या है? वह प्रमादी बन गया। उसका अहं उभर गया। अब वह आदमी को कुछ भी नहीं समझने लगा। एक-एक कर अनेक बुराइयां उसमें आ गईं। भविष्य में प्राप्त होने वाली राज्यसत्ता के लोभ ने उसे अंधा बना डाला। सत्ता की मदिरा का मादकपन अनूठा होता है। उसकी स्मृति मात्र आदमी को पागल बना देती है। वह सत्ता के मद में उन्मत्त हो गया। वह इतना बुरा व्यवहार और आचरण करने लगा, जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। कुछ दिन बीते। बड़ा भाई कहीं जा रहा था। उसके पैर में सूल चुभी और वह उसके दर्द को कुछ दिनों तक भोगता रहा। छोटा भाई एक अटवी से गुजर रहा था। उसकी दृष्टि एक स्थान पर टिकी। उसने उस स्थान को खोदा और वहां गड़ी मोहरों की थैली निकाल ली। ____ चार महीने बीत गए। दोनों पुनः ज्योतिषी के पास गए। दोनों ने कहा-'ज्योतिषीजी! आपकी दोनों बातें नहीं मिलीं। न सूली की सजा ही मिली और न राज्य ही मिला।' ज्योतिषी पहुंचा हुआ था। बड़ा निमित्तज्ञ था। उसने बड़े भाई की ओर मुड़कर कहा-'मेरी बात असत्य हो नहीं सकती। तुमने अच्छा आचरण किया, अन्यथा तुम पकड़े जाते और तुम्हें सूली की सजा मिलतीं। पर वह सूली की सजा सूल से टल गई। बताओ, तुम्हारे पैर में सूल चुभी या नहीं?' छोटे भाई से कहा-'तुम्हें राज्य प्राप्त होने वाला था। पर तुम प्रमत्त बने; बुरा आचरण करने लगे। तुम्हारा राज्य-लाभ मोहरों में टल गया।' . इससे यह स्पष्ट होता है कि संचित पुण्य बुरे पुरुषार्थ से पाप में बदल जाते हैं और संचित पाप अच्छे पुरुषार्थ से पुण्य में बदल जाते हैं। यह संक्रमण होता है, किया जाता है। ... मुनिजी को फिर मैंने कहा-यह जैन दर्शन का मान्य सिद्धान्त है और मैंने इसी का 'जीव-अजीव' पुस्तक में विमर्श किया है। स्थानांग सूत्र में चतुर्भगी मिलती है अतीत से मुक्त वर्तमान 166