________________ तक हम अपने आचरण और व्यवहार के उत्तरदायित्व का अनुभव नहीं करेंगे, तब तक उनमें परिष्कार भी नहीं कर सकेंगे। ___ हमारे समक्ष दो स्थितियां हैं-एक है अपरिष्कृत आचरण और व्यवहार और दूसरी है परिष्कृत आचरण और व्यवहार। जब तक उत्तरदायित्व का अनुभव नहीं करेंगे, तब तक आचरण और व्यवहार अपरिष्कृत ही रहेगा, अपरिमार्जित और पाशविक ही रहेगा। वह कभी ऊंचा या पवित्र नहीं बनेगा। वह कभी स्वार्थ की मर्यादा से मुक्त नहीं बनेगा। भगवान् महावीर ने कर्मवाद के क्षेत्र में जो सूत्र दिए, मैं दार्शनिक दृष्टि से उन्हें बहुत मूल्यवान् मानता हूं। सामान्य आदमी इतना ही जानता है कि आदमी कर्म से बंधा हुआ है, अतीत से बंधा हुआ है। महावीर ने कहा-'किया हुआ कर्म भुगतना पड़ेगा।' यह सामान्य सिद्धान्त है। इसके कुछ अपवाद-सूत्र भी हैं। कर्मवाद के प्रसंग में भगवान् महावीर ने उदीरणा, संक्रमण, उद्वर्तन और अपवर्तन के सूत्र भी दिए। उन्होंने कहा-'कर्म को बदला जा सकता है, कर्म को तोड़ा जा सकता है, कर्म को पहले भी किया जा सकता है, कर्म को बाद में भी किया जा सकता है। यदि पुरुषार्थ सक्रिय हो, जागृत हो तो हम जैसा चाहें वैसे रूप में कर्म को बदल सकते हैं।' संक्रमण का सिद्धान्त कर्मवाद की बहुत बड़ी वैज्ञानिक देन है। मैंने इस पर जैसे-जैसे चिन्तन किया, मुझे प्रतीत हुआ कि आधुनिक ‘जीव विज्ञान' की जो नयी वैज्ञानिक धारणाएं और मान्यताएं आ रही हैं, वे इसी संक्रमण सिद्धान्त की उपजीवी हैं। आज के वैज्ञानिक इस प्रयत्न में लगे हुए हैं कि 'जीन' को यदि बदला जा सके तो पूरी पीढ़ी का कायाकल्प हो सकता है। यदि ऐसी कोई तकनीक प्राप्त हो जाए, कोई सूत्र हस्तगत हो जाए, जिससे 'जीन' में परिवर्तन लाया जा सके तो अकल्पित क्रांति घटित हो सकती है। यह 'जीन' व्यक्तित्व-निर्माण का घटक तत्त्व है। संक्रमण का सिद्धान्त 'जीन' को बदलने का सिद्धान्त है। संक्रमण से 'जीन' को बदला जा सकता है। कर्म-परमाणुओं को बदला जा सकता है। बड़ा आश्चर्य हुआ जब एक दिन हमने इस सूत्र को समझा। बड़े-बड़े तत्त्वज्ञ मुनि भी इस सिद्धान्त को आश्चर्य से देखने लगे। एक घटना अतीत से मुक्त वर्तमान 167