________________ इसलिए ऐसा घटित हो गया। ऐसा सोचना या बहाना करना गलत होगा। अपने उत्तरदायित्व को हमें स्वीकारना होगा। हमें यह कहना होगा कि अपने आचरण और व्यवहार का सारा उत्तरदायित्व हम पर है। 'उत्तरदायी कौन' की मीमांसा में मैंने पहले कहा था कि भिन्न-भिन्न क्षेत्र के व्यक्ति भिन्न-भिन्न तत्त्वों को उत्तरदायी बताते हैं। मनोवैज्ञानिक, रासायनिक, शरीरशास्त्री और कर्मवादी-अपने-अपने दर्शन के अनुसार पृथक्-पृथक् तत्त्वों को उत्तरदायी कहते हैं। पर ये सब उत्तर सापेक्ष हैं। शरीर में उत्पन्न होने वाले रसायन हमें प्रभावित करते हैं, नाड़ी-संस्थान हमें प्रभावित करता है, वातावरण और परिस्थिति हमें प्रभावित करती है। ये सब प्रभावित करने वाले तत्त्व हैं, पर उत्तरदायित्व किसी एक का नहीं है। किसका होगा? ये सब अचेतन हैं। काल अचेतन है, पदार्थ का स्वभाव अचेतन है, नियति और कर्म अचेतन है। हमारा ग्रन्थितन्त्र और नाड़ीतन्त्र भी अचेतन है। परिस्थिति और वातावरण भी अचेतन है। पूरा का पूरा तंत्र अचेतन है, फिर उत्तरदायित्व कौन स्वीकारेगा? अचेतन कभी उत्तरदायी नहीं हो सकता। उसमें उत्तरदायित्व का बोध नहीं होता। वह दायित्व का निर्वाह भी नहीं करता। दायित्व का प्रश्न चेतना से जुड़ा हुआ है। चेतना के संदर्भ में ही उस पर मीमांसा की जा सकती है। जहां ज्ञान होता है वहां उत्तरदायित्व का प्रश्न आता है। जब सब अंधे-ही-अंधे हैं, वहां दायित्व किसका होगा? अंधों के साम्राज्य में दायित्व किसका? सब पागल-ही-पागल हों तो दायित्व कौन लेगा? पागलों के साम्राज्य में जो पागल नहीं होता, उसे भी पागल बन जाना पड़ता है। यदि वह पागल नहीं बनता है तो सुख से जी नहीं सकता। दायित्व की बात केवल चेतना जगत में आती है। जहां चेतना का विवेक और बोध है वहां दायित्व-निर्वाह की क्षमता है। हमारा पुरुषार्थ चेतना से जुड़ा हुआ है। पुरुषार्थ चेतना से निकलने वाली वे रश्मियां हैं जिनके साथ दायित्व का बोध और दायित्व का निर्वाह जुड़ा हुआ है। ___ हमारा पुरुषार्थ उत्तरदायी होता है। इसको हम अस्वीकार नहीं कर सकते। हमें अत्यन्त ऋतुजा के साथ अपने व्यवहार और आचरण का दायित्व ओढ़ लेना चाहिए। उसमें कोई झिझक नहीं होनी चाहिए। जब 166 कर्मवाद