________________ एक नयी खोज हुई है। अमेरिका के राष्ट्रीय मानव स्वास्थ्य के वैज्ञानिक डॉ. सीवेनपाल ने कहा-'आज तक हम नहीं जानते थे कि चिंता पैदा करने वाले रसायन कौन-से हैं, किन्तु अब हमें वे रसायन ज्ञात हो गए हैं। हम चिंता मिटाने वाले रसायनों को तो पहले से ही जान चुके थे, पर अब उनको पैदा करने वाले रसायनों का भी पता लगा लिया है। मनोचिकित्सक ऐसी दवा देता है कि चिन्ता में डूबा हुआ आदमी सुख और शान्ति का अनुभव करने लग जाता है। अब ऐसा इंजेक्शन दिया जा सकता है कि शान्त और सुखी आदमी क्षण-भर में चिन्ताग्रस्त होकर दःखी हो जाए। आदमी स्वतंत्र कहां है? एक दवा से वह चिन्तातुर होकर चिन्ता के महासागर में डूब जाता है और दूसरी दवा से वह चिंता से मुक्त होकर आनन्द के महासमुद्र में डुबकियां लेने लग जाता है। एक प्रयोग से आदमी में खाने की लालसा उभर आती है और दूसरे प्रयोग से उसमें खाने के प्रति अरुचि हो जाती है। यह सारा विद्युत् प्रकंपनों के द्वारा होता है। आज रसायनों के विषय में इतनी विशद जानकारी प्राप्त हो गई है कि व्यक्ति को कैसा बनाया जाए, यह सारी कला रासायनिकविदों के हाथ में है। आज वे प्रयोगशाला में बैठे-बैठे व्यक्ति के भाग्य पर नियंत्रण करते हैं। यह बहुत अच्छा नहीं हुआ, बुरा हुआ है। यदि यह बात वैज्ञानिकों के हाथ में आ गई और राजनीतिज्ञों ने इसका उपयोग करना शुरू कर दिया तो फिर वे अपने विपक्ष वालों को कभी चिंतामुक्त नहीं होने देंगे। उन्हें चिन्ता में डाले रखेंगे। चिन्ता की स्थिति में, वे विरोध करना भूल जाएंगे। किसी बहाने उनको पकड़कर ऐसा इंजेक्शन दे देंगे कि वे बेचारे जीवन भर चिन्ताग्रस्त होकर सड़ते रहें। यह बात अच्छी नहीं है, पर है सच। ___ आदमी रसायनों से बनता-बिगड़ता है। बाहर के रसायन खोजे गए हैं जो आदमी के चरित्र को प्रभावित करते हैं। भीतर के रसायन भी कम प्रभावित नहीं करते। उनका गहरा प्रभाव होता है। शरीरशास्त्रीय दृष्टि से भी कहा जा सकता है कि जितने आवेग, उतने ही रसायन। कर्मशास्त्र में इसे 'रसविपाक' कहा जाता है। रसविपाक कहें या रसायन-दोनों में कोई अन्तर नहीं है। जहां कर्म का विपाक होता है प्रतिबद्धता का प्रश्न 136