________________ यह सुनने में और व्यवहार में उचित भी लगता है। काल के परिपाक के बिना कुछ भी नहीं होता। आज ही बीज बोया और आज ही आम का वृक्ष उग आएगा, कभी संभव नहीं। उसका उगना, आम का लगना और पकना, कालसापेक्ष होता है। काल ही सब कुछ है। मौत आती है तो काल से आती है और जीवन चलता है तो काल से चलता है। काल का एक पूरा चक्र है। सर्दी के मौसम में सैकड़ों लोग ज्वरग्रस्त हो जाते हैं और गर्मी में सैकड़ों लोग लू से संतप्त हो जाते हैं। यह ऋतु का चक्र है, काल का प्रभाव है। जिस समय जो-जो ऋतु होती है, उस समय वैसा ही प्रभाव होने लग जाता है। सर्दी में लू क्यों नहीं लगती? गर्मी में सर्दी-जकाम अधिक क्यों नहीं होता? सर्दी में भिन्न प्रकार की बीमारियां होती हैं और गर्मी में भिन्न प्रकार की बीमारियां होती हैं तथा वर्षा में भिन्न प्रकार के रोग होते हैं। काल के प्रभाव से ये बीमारियां ही नहीं होती, मनुष्य के मनोभाव भी बदलते रहते हैं। सर्दी में एक प्रकार का मनोभाव होता है तो गर्मी में दूसरे प्रकार का मनोभाव होता है। मनुष्य के जीवन की घटनाओं के साथ, ज्योतिर्विज्ञान का गहरा संबंध जुड़ा हुआ है। आज वह विज्ञान विस्मृत-सा हो रहा है, अन्यथा इस विज्ञान के आधार पर प्रत्येक घटना ही जानकारी सहज-सुगम हो जाती है। ज्योतिर्विज्ञान कालविज्ञान है। यह काल से जुड़ा हुआ विज्ञान है। एक आदमी बीमार है। दवा दी। कोई असर नहीं हुआ। क्यों? इसका भी पुष्ट कारण है। प्रत्येक औषधि ज्योतिर्विज्ञान के साथ जुड़ी हुई है। वहां बताया गया है, कौन व्यक्ति किस समय में, किस नक्षत्र में औषधि को तोड़े और किस नक्षत्र में उसे लाये? प्रातः, मध्याह्न में या सायं? प्रत्येक के साथ काल का संबंध है। काल की सीमा को विस्मृत कर देने का ही यह परिणाम है कि आज औषधि उतना लाभ नहीं कर रही है जितना लाभ करना चाहिए था। काल नियामक तत्त्व है। कुछ स्वभाववाद को मानते हैं। उनके अनुसार सब कुछ स्वभाव 146 कर्मवाद