________________ पड़ता है। उसके कारण ही भिन्न-भिन्न प्रकार के आचरण होते हैं। ध्यान साधना के द्वारा ऐसी स्थिति का निर्माण हो जाए कि उद्दीपन उद्दीपन न रहें, प्रभावहीन हो जाएं। मन पर उनका कोई प्रभाव न पड़े। यह है प्रतिक्रिया विरति। इस स्थिति में ही बाहरी व्यवस्था टूट सकती है। कोई भी वस्तु अपने आप में उद्दीपक नहीं होती। गाली क्रोध का उद्दीपक तत्त्व है। पर जिस व्यक्ति का मन शान्त और पवित्र हो गया, उसके लिए गाली में उद्दीपकता नहीं रहती। वह समाप्त हो जाती है। ऐसे शांत व्यक्ति को गाली दें, उसे क्रोध नहीं आएगा, परन्तु उसमें करुणा जागेगी। ऐसा क्यों होता है? यह उलटा परिणाम क्यों होता है? इसका कारण है कि उस व्यक्ति के लिए गाली की उद्दीपकता समाप्त हो जाती है। ___आचार्य भिक्षु कहीं जा रहे थे। सामने एक आदमी मिला। आचार्य भिक्षु को देख उसने वंदना की। उनके चेहरे को ध्यान से देखकर पूरा-आपका नाम? 'मेरा नाम भीखण है।' उसने आश्चर्य के साथ कहा-'कौन! तेरापंथी भीखन!' _ 'हां, तेरापंथी भीखन।' . 'बहुत बुरा हुआ। 'क्या बुरा हुआ?' 'आपका मुंह देख लिया। अब मुझे नरक में जाना पड़ेगा।' भीखन को यह सुनकर क्रोध आना चाहिए था, पर वे मुसकराकर बोले-'अरे! यह तो बताओ, तुम्हारा मुंह देखने वाले की क्या गति होगी?' 'मेरा मुंह देखने वाला सीधा स्वर्ग जाएगा।' उसने कहा। - आचार्य भिक्षु बोले- 'मैं तो इस बात को नहीं मानता कि किसी का मुंह देखने से कोई स्वर्ग में जाता है या कोई नरक में जाता है। पर तुम्हारे कथानुसार तो यह सिद्ध हो गया कि मैंने तुम्हारा मुंह देखा है इसलिए मैं स्वर्ग में जाऊंगा और तुम"। मेरे लिए तो अच्छा ही हुआ। एक कटु बात को इस प्रकार विनोद से टाल देना प्रत्येक के बूते की बात नहीं होती। एक साधक व्यक्ति ही इस प्रकार के प्रसंगों पर शांतचित्त रह सकता है। आध्यात्मिक साधना के द्वारा चेतना रूपान्तरित प्रतिबद्धता का प्रश्न 137