________________ हम कर्म-बंधन की प्रक्रिया से चले थे और कर्म-मुक्ति की प्रक्रिया तक पहुंच गये। बंधन के क्षण से मुक्ति के क्षण तक आ गये। अब हम कर्म संबंधी दो-चार बिन्दुओं पर और ध्यान दें, जो सारी चर्चा का निष्कर्ष होगा। प्रश्न होता है कि कर्म का अस्तित्व है या नहीं? यह कहा जाता . है कि संसार में बहुत विविधता है और इस विविधता का एक हेतु कर्म है। किन्तु विविधता का हेतु केवल कर्म ही नहीं है, और भी अनेक कारण हैं। चैतन्य जगत् में विविधता है। चैतन्य जंगत् में घटित होने वाली विविध घटनाओं का एक बड़ा निमित्त है कर्म। यदि परमाणु नहीं होते, कर्म का बंध नहीं होता तो ये विविधताएं नहीं होतीं। सब कुछ समान ही होता। सब आत्मा के स्वभाव में होते। सब एक-जैसे होते, कोई परिवर्तन नहीं होता, कोई विविधता नहीं होती। विभक्ति होना, विभाजन होना-यह कर्म के अस्तित्व का बहुत बड़ा प्रमाण है। __ कर्म के अस्तित्व का दूसरा कारण है-मनुष्य के रागात्मक और द्वेषात्मक परिणाम। यदि मनुष्य में राग और द्वेष नहीं होता तो कर्म को स्वीकार करने का कोई कारण नहीं होता। रागात्मक और द्वेषात्मक परिणाम इसलिए होते हैं कि मनुष्य कर्म से बंधा है। बंधन चैतन्य का मूल स्वभाव नहीं है। यह स्वभाव का अतिक्रमण है। स्वभाव से विरोधी कार्य जो हम कर रहे हैं, उनका प्रेरक तत्त्व है कर्म। तीसरा कारण है-चंचलता। यदि कर्म नहीं होते तो चंचलता नहीं होती। सक्रियता तो होती, चंचलता नहीं होती। सक्रियता पदार्थ का लक्षण है। कोई भी पदार्थ निष्किय नहीं होता। सब सक्रिय होते हैं। सक्रियता पदार्थ का लक्षण है। चंचलता पदार्थ का लक्षण नहीं है। ___ हमने अपने कर्म-अणुओं द्वारा अपने पर एक शरीर का बंधन डाल रखा है। एक सूक्ष्म शरीर का और एक स्थूल शरीर का। उसी शरीर के द्वारा यह सारी चंचलता हो रही है। शरीर है इसलिए मन की चंचलता है। शरीर है इसलिए वाणी की चंचलता है। ये सब मूलतः शरीर की चंचलता के कारण चंचल हैं। कर्म के कारण ये शरीर और शरीर के 128 कर्मवाद