________________ पर एकछत्र शासन नहीं कर सकता। जब आत्मा के चैतन्य स्वभाव का जागरण होता है तब कर्म की सत्ता डगमगा जाती है। कितना ही गहरा अंधकार हो, एक छोटी-सी प्रकाश की रेखा आती है, तब वह समाप्त हो जाता है। उसका एकछत्र-सा लगने वाला शासन नष्ट-भ्रष्ट हो जाता है। प्रकाश के सामने अंधकार टिक नहीं सकता। जब तक प्रकाश नहीं होता, तब तक ही अंधकार रहता है। जब तक चैतन्य का जागरण नहीं होता, जब तक ही कर्म टिकता है। जैसे ही चेतना जागी, कर्म अपने आप समाप्त होने लग जाता है। ___दूसरी बात है-परिवर्तन का सिद्धांत। विश्व में कोई भी तत्त्व ऐसा नहीं है जो परिवर्तनशील न हो। जो नित्य है वह अनित्य भी है और जो अनित्य है वह नित्य भी है। सब परिवर्तनशील हैं। भगवान् महावीर ने कर्म-शास्त्र के विषय में कुछ ऐसी नयी धारणाएं दी जो अन्यत्र दुर्लभ हैं या अप्राप्य हैं। उन्होंने कहा-कर्म को बदला जा सकता है। वैज्ञानिकों में एक शताब्दी तक ये धारणाएं चलती रहीं कि लोहा, तांबा, सोना, पारा-ये सारे मूल तत्त्व हैं, इनको एक-दूसरे में बदला नहीं जा सकता। उन्होंने मूल तत्त्व सौ माने। उनको एक-दूसरे में नहीं बदला जा सकता। किन्तु बाद में खोजों ने यह प्रमाणित कर दिया कि ये सब मूल तत्त्व नहीं हैं। उनको एक-दूसरे में बदला जा सकता है। हजारों वर्ष पहले यह निश्चित मान्यता थी कि पारे से सोना बनाया जा सकता है, पारे को सोने में बदला जा सकता है। आज का विज्ञान भी इसी निष्कर्ष पर पहुंचा है कि पारे से सोना बनाया जा सकता है। प्राचीन रसायन-शास्त्रियों ने पारे से सोना बनाने की अनेक विधियों का उल्लेख किया। जैन-ग्रन्थों में भी उनका यत्र-तत्र वर्णन प्राप्त है। ___वैज्ञानिकों ने यह निष्कर्ष निकाला कि पारे के अणु का भार 200 होता है। उसे प्रोटोन के द्वारा तोड़ा जाता है। प्रोटोन का भार 1 होता है। प्रोटोन से विस्फोटित करने पर वह प्रोटोन पारे में घुल-मिल गया और पारे का भार 201 हो गया। 201 होते ही अल्फा का कण निकल जाता है। उसका भार चार है। चार का भार कम हो गया। शेष 167 भार का अणु रह गया। सोने के अणु का भार 167 और पारे के अणु 130 कर्मवाद