________________ प्रायश्चित करते रहो ताकि गांठ न पड़ने पाए। ___आठवां सूत्र है-विनय। मन में अहं नहीं होना चाहिए। अहंकार और ममकार, ये दो बाधाएं हैं। साधना में कोई अहंकार नहीं होना चाहिए। साधक अत्यन्न विनम्र और मूदु रहे। नौवां सूत्र है-वैयावृत्य। इसका अर्थ है-साधना करने वालों का सहयोग करना। केवल स्वार्थी मत बनो। जो साधना करना चाहते हैं, उनके लिए, अपने से जो कुछ बन पड़े, करो। यह वैयावृत्य है, सेवा है। दसवां सूत्र है-स्वाध्याय। स्वाध्याय का अर्थ है-पढ़ना, ज्ञान प्राप्त करना। वह ज्ञान प्राप्त करो जो तुम्हारी आत्मा को जागृत करे। केवल पुस्तकीय ज्ञान पर्याप्त नहीं है। कर्म-बंधन से मुक्ति दिलाने वाला ज्ञान प्राप्त करो। ऐसा ज्ञान प्राप्त करो जो मूर्छा के बंधनों से छुटकारा दिला सके। ___ ग्याहरवां सूत्र है-ध्यान। नहीं पढ़ना है तो अपने आप में लीन हो जाओ। ध्यान लीन होने की प्रक्रिया है। ध्यान के माध्यम से तुम सत्य तक पहुंच जाओगे, सत्य को पा लोगे, सत्य का साक्षात् कर लोगे। ____बारहवां सूत्र है-व्युत्सर्ग। इसका अर्थ है-छोड़ना। मैंने कहा भी था कि महावीर की साधना का सूत्र है-अयोग की साधना। सब सम्बन्धों को तोड़ दो। संब विसर्जित कर दो। जो कुछ हो उसका विसर्जन कर दो। शरीर का व्युत्सर्ग और कर्म का व्युत्सर्ग। यह सारी तपस्या की प्रक्रिया है। इसके बारह सूत्र हैं। कर्म-मुक्ति की प्रक्रिया के दो तत्त्व हैं-एक है संवर और दूसरा है तपस्या या निर्जरा। ___महर्षि पतंजलि ने बतलाया कि क्रियायोग के द्वारा क्लेशों को कम . किया जा सकता है। तपस्या, स्वाध्याय और ईश्वर प्रणिधान-यह क्रियायोग है। ___ भगवान् महावीर की भाषा में संवर और निर्जरा के द्वारा आस्रवों को क्षीण किया जा सकता है। इस प्रक्रिया के द्वारा कर्म-मुक्ति घटित होती है और व्यक्ति सदा-सदा के लिए मुक्त हो जाता है। कर्मवाद के अंकुश 127