________________ (निरोध) की स्थिति उपलब्ध होती है और तपस्या के द्वारा निर्जरा हो जाती है, तब कर्म की ठीक चिकित्सा होती है। ___इसलिए कुशल साधक को कर्म, कर्म के हेतु, कर्म-मुक्ति और कर्म-मुक्ति के हेतु-इन चारों को जानना बहुत आवश्यक है। इनको जाने बिना वह अपनी साधना में विकास नहीं कर सकता।... हमारे आवेग कर्मों का आस्रव निरंतर करते रहते हैं-कर्मों के आने के द्वारों को खोलते रहते हैं। उन द्वारों को कैसे बंद किया जाये? आवेगों को कैसे शान्त किया जाये, यदि मोह के आवेग शान्त होते हैं, मोह की आवृत्तियां शान्त होती हैं, कम होती हैं तो दबाव अपने आप कम होने लग जाता है। साधक के सामने यह ज्वलन्त प्रश्न है कि उन आवेगों को, मोह की आवृत्तियों को शांत कैसे किया जाये? आवेगों को शान्त करने का प्रश्न केवल साधकों के सामने ही नहीं है किन्तु चिकित्सकों के सामने भी है। क्योंकि आवेगों को शान्त किये बिना जीवन भी स्वस्थ नहीं चल सकता। आवेग बुरी आदतों के उत्पादक हैं। स्वस्थ जीवन के लिए उन्हें शान्त करना आवश्यक होता है। चिकित्सकों ने भी अपनी सीमा में आवेग-शान्ति के उपाय खोजे हैं। जितने आवेग हैं, उन सबके केन्द्र हमारे मस्तिष्क में हैं। जिनके माध्यम से ये आवेग अभिव्यक्त होते हैं, वे सब केन्द्र हमारे मस्तिष्क में हैं। उन केन्द्रों को समाप्त करने से आवेग शान्त हो जाते हैं। क्रोध का एक केन्द्र है, एक बिन्दु है। उस बिन्दु को समाप्त कर देने पर क्रोध आना बन्द हो जाता है। मद्रास में 'ब्रेन इन्स्टीट्यूट' है। यह भारत का बहुत बड़ा केन्द्र है। यहां के डॉक्टरों ने कुछ ऑपरेशन किये। उन्होंने कुछ खोजें कीं। उन्होंने बताया कि मदिरा पीने की आदत ऑपरेशन के द्वारा छुड़ाई जा सकती है। मस्तिष्क में एक केन्द्र है, जो मादक वस्तुओं के प्रति आकृष्ट होता है। उसकी उत्तेजना को समाप्त कर दिया जाये तो फिर मादक वस्तुओं के सेवन की आदत समाप्त हो जाती है, भावना समाप्त हो जाती है। उन्होंने ऐसे ऑपरेशन किये हैं और उनमें सफल हुए हैं। उनका यह निष्कर्ष है कि अनेक आवेग, अनेक उत्तेजनाएं, चिड़चिड़ा स्वभाव, कलह करने की वृत्ति, इन सबको मस्तिष्क के अमुक-अमुक केन्द्रों के ऑपरेशन के 64 कर्मवाद