________________ निमित्त प्रदान कर दिया। दोनों प्रकार से विपाक का उदय होता है। एक प्राकृतिक वातावरण या अन्य कारण से तथा दूसरी हमारी भूल या प्रमाद के कारण से। निमित्त मिलते ही विपाक उदय में आ जायेगा। उस स्थिति में हम क्या करें? उस स्थिति में हम.कष्ट-सहिष्णुता बनने का अभ्यास करें। साधना के लिए आवेगों को कम करने के लिए कष्ट-सहिष्णु का अभ्यास अत्यन्त आवश्यक है। जो कष्ट-सहिष्णु नहीं होता, कठिनाइयों को नहीं झेल सकता, वह न साधना ही कर सकता है और न कर्म के चक्र-व्यूह को ही तोड़ सकता है। ____ भगवान् महावीर ने धर्म के दो लक्षण बताए। उन्होंने कहा-धर्म का पहला लक्षण है-अहिंसा, राग-द्वेष का न होना। धर्म का दूसरा लक्षण है-परीषह-सहन, कष्टों को सहने की क्षमता। जीवन में द्वंद्व आते हैं। कभी सुख आता है और कभी दुःख। कभी अनुकूलता रहती है और कभी प्रतिकुलता। कभी प्रियता की संवेदना होती है और कभी अप्रियता की। कभी प्रशंसा होती है और कभी निंदा। कभी उपब्धि होती है और कभी हानि। ये जो सारे द्वंद्व आते हैं, इनको सहन करने वाली तितिक्षा की चेतना जब तक जागृत नहीं होती, तब तक न साधना होती है और न आवेग ही कम होते हैं। ऐसी स्थिति में कर्म के व्यूह को भी नहीं तोड़ा जा सकता। इसलिए हमारी दोनों प्रकार की शक्तियां जागृत होनी चाहिए। एक है अ-राग की शक्ति और एक है अ-द्वेष की शक्ति-अराग चेतना और अद्वेष चेतना। वीतराग के साथ-साथ तितिक्षा की चेतना भी जागृत होनी चाहिए। यदि तितिक्षा नहीं है तो राग भी आ सकता है और द्वेष भी आ सकता है। अनुकूलता में राग आएगा। राग को सहने की भी शक्ति होनी चाहिए। अनुकूलता को सहन करने की शक्ति होनी चाहिए। मन के अनुकूल कोई घटना घटित होती है, उसे यदि हम सहन नहीं कर सकते तो मन में राग पैदा हो जाएगा, आवेग पैदा हो जाएगा। बहुत हर्ष होना, अध्यात्म की दृष्टि से ही अवांछनीय नहीं है, स्वास्थ्य की दृष्टि से भी वांछनीय नहीं है। यह अकालमृत्यु का कारण बन जाता है। . एक आदमी बहुत गरीब था। लाटरी में उसे दो लाख रुपये मिले। आवेग-चिकित्सा 101