________________ से रोग पैदा होता है, अधिक नींद लेने से रोग पैदा होता है और अधिक जागरण से भी रोग पैदा होता है। आहार, नींद और जागरण-ये हमारे क्रिया-पक्ष हैं। ये किसी कर्म के उदय नहीं हैं। कोई भी कर्म इनमें काम नहीं करता। हमारा व्यवहार ही इनमें काम करता है। इन सब घटनाओं से यह प्रमाणित होता है कि पूर्व कर्म ही इनका घटक नहीं है। उत्तरवर्ती क्षण का कारण पूर्ववर्ती क्षण ही नहीं होता। वही उसका उत्तरदायी नहीं होता। उसका अपना स्वतंत्र भी कुछ है। ... अकाल-मृत्यु के सात कारण बतलाए गए हैं१. राग-स्नेह और भय आदि का तीव्रता। 2. शस्त्र-प्रयोग। 3. आहार की न्यूनाधिकता। 4. आंख, कान आदि की तीव्रतम् वेदना। 5. पराघात-गढ़े आदि में गिरना। 6. सांप आदि का स्पर्श। 7. आन-अपान का निरोध। अकाल-मृत्यु के ये सात कारण हैं। मृत्यु का समय नहीं है, किन्तु अकाल में ही मृत्यु की घटना घटित हो जाती है। इन कारणों में एक कारण है-स्पर्श। कोई जा रहा है। रास्ते में सांप ने काट लिया। वह मर गया। एक आदमी शांत बैठा है। ऊपर से भारी चीज उस पर आकर गिरी और वह मर गया। भारी पत्थर ऊपर से अचानक गिरा और दो-चार व्यक्ति उसके नीचे दबकर मर गये। यह सब अकाल-मृत्यु है। यह किसी-न-किसी निमित्त से घटित होती है, किन्तु इसमें कोई कर्म कारण नहीं बनता। आकाश में दो विमान टकरा गये। पांच सौ आदमियों की तत्काल मृत्यु हो गई। विमानों की टक्कर किसी कर्म के योग से नहीं हुई। आकस्मिक घटना घटी और पांच सौ आदमी मृत्यु की गोद में सो गये। ऐसी आकस्मिक घटनाओं की व्याख्या हम कर्म के आधार पर नहीं कर सकते। ___ प्रतिप्रश्न होता है कि क्या रोग का होना किसी भी कर्म से संबंधित नहीं है? अकाल मृत्यु का होना क्या किसी भी कर्मे से संबंधित नहीं 114 कर्मवाद