________________ है? संबंधित है। इसे हमें समझना है। ये घटनाएं कर्म के सहारे घटित नहीं होतीं। रोग होना एक घटना है। रोग हुआ। एक घटना घटित हुई। उसका कारण है अमनोज्ञ भोजन। दूषित आटा मिला, विष-मिश्रित पदार्थ मिला, रोग हो गया। बीमारी हो गई। इसे हम संयोग कहेंगे। रोग होना असातवेदनीय कर्म का उदय है। अहितकर भोजन करने से वह उदय में आ गया, विपाक में आ गया। किन्त जो अहितकर भोजन खाया वह असातवेदनीय कर्म के उदय से नहीं खाया। इसे हम और स्पष्टता से समझें। यदि अहितकर भोजन असातवेदनीय कर्म के उदय से खाया गया हो तो हम कह सकते हैं कि कर्म के कारण यह परिणाम भोगना पड़ा। किन्तु संयोगवश अहितकर भोजन खाने में आ गया। उसे हम कर्म का परिणाम नहीं मान सकते। अहितकर भोजन करना और अहितकर भोजन करने से रोग होना, इन दोनों में बहुत बड़ा अंतर है। अहितकर भोजन की घटना कर्म के कारण नहीं हुई, किन्तु उस घटना के घटित होने के कारण कर्म का विपाक हो गया। विमान की दुर्घटना आयुष्यकर्म के कारण घटित नहीं हुई किन्तु विमान की दुर्घटना हुई इसलिए आयुष्य कर्म की उदीरणा हो गयी। आयुष्य कर्म की उदीरणा होना और विमान का दुर्घटनाग्रस्त होना-ये दो बातें हैं। इनका परस्पर संबंध नहीं है। विमान की दुर्घटना हुई इसलिए आयुष्य समाप्त हो गया-यह संबंध हो सकता है। किन्तु उससे पहले इस घटना के साथ आयुष्य कर्म का संबंध नहीं है। __ प्रश्न होता है कि क्या ऐसा हो सकता है? क्या सैकड़ों आदमियों का आयुष्य एक साथ समाप्त हो सकता है? हां, ऐसा हो सकता है। आयुष्य कर्म के दो प्रकार हैं-सोपक्रम आयुष्य और निरुपक्रम आयुष्य। कुछेक कारणों से आयुष्य कर्म में परिवर्तन हो सकता है, वह है सोपक्रम आयुष्य। जहां कोई भी निमित्त काम नहीं देता, आयुष्य कर्म में परिवर्तन लाने में कोई निमित्त सक्षम नहीं होता, वह है निरुपक्रम आयुष्य। इतना शक्तिशाली होता है यह आयुष्य कर्म कि निमित्त का उस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। उसमें इतनी तीव्र ऊर्जा और शक्ति होती है कि सारे निमित्त नीचे रह जाते हैं, वह ऊपर तैरता रहता है। इसमें कोई परिवर्तन नहीं स्वतंत्र या परतंत्र? 115