________________ तो उतरना भी पड़ेगा। चढ़ने में वह स्वतंत्र है, पर उतरने में परतंत्र है। अब उसे उतरना इसलिए पड़ेगा कि वह चढ़ गया। चढ़ने का परिणाम है उतरना। उतरना कोई स्वतंत्र क्रिया नहीं है। मोहम्मद साहब के एक शिष्य का नाम था अली। उसने एक बार पूछा-हम काम करने में स्वतंत्र हैं या परतंत्र? मोहम्मद साहब ने कहा-'अपने बायें पैर को उठाओ। उसने अपना बायां पैर ऊपर उठा लिया। फिर मोहम्मद साहब ने कहा-'अच्छा, अब अपने दायें पैर को उठाओ।' अली असमंजस में पड़ गया। बायां पैर पहले से ही उठाया हुआ है। अब दायां पैर ऊपर कैसे उठाया जाए? उसने कहा-'साहब! यह कैसे संभव हो सकता है कि मैं दायां पैर भी ऊपर उठा लूं?' मोहम्मद साहब ने कहा- 'एक पैर उठाने में तुम स्वतंत्र हो, दूसरा पैर उठाने में स्वतंत्र नहीं हो, परतंत्र हो। स्वतंत्रता और परतंत्रता-दोनों सापेक्ष हैं। उन्हें निरपेक्ष समझना भूल है। आदमी अपने कर्तृत्व में स्वतंत्र है, पर परिणाम भोगने में परतंत्र हैं। कर्तृत्वकाल में हम स्वतंत्र हैं, पर परिणाम-काल में हमें परतंत्र होना पड़ता है। विकास करने में हम स्वतंत्र हैं। हमारा जितना विकास होता है उसमें हमारा स्वतंत्र कर्तत्व बोलता है। उसमें हम स्वतंत्र हैं। किसी भी कर्म के द्वारा हमारा विकास नहीं होता। कर्म के द्वारा हमारे विकास का अवरोध होता है। आप सोचेंगे कि शुभ नामकर्म के द्वारा अच्छा फल मिलता है, अच्छा नाम होता है, पदार्थों की उपलब्धि होती है, यश मिलता है। यह कोई आत्मा का विकास नहीं है। ये सब पौद्गलिक जगत् में घटित होने वाली घटनाएं हैं। इनसे आत्मा का विकास नहीं होता। आत्मा का स्वभाव है-चैतन्य। आत्मा का स्वभाव है-आनन्द। आत्मा का स्वभाव है-शक्ति। चैतन्य का विकास, आनन्द का विकास, शक्ति का विकास, किसी भी कर्म के उदय से नहीं होता। कर्म इन सब प्रकार के विकासों को रोकता है, बाधा डालता है, अवरोध उत्पन्न करता है। कोई भी पुद्गल विकास का मूल हेतु नहीं बनता। ___हमारे चैतन्य का विकास, हमारे आनन्द का विकास, हमारी शक्ति का विकास, हमारा पूर्ण जागरण इसलिए होता है कि हम स्वतंत्र हैं। 110 कर्मवाद