________________ हमारे स्वतंत्र होने का स्वयंभू प्रमाण है कि हमारा विकास होता है और हमारा विकास इसलिए होता है कि हम स्वतंत्र हैं। यदि हम स्वतंत्र नहीं होते तो यह विकास कभी नहीं होता। कर्मों के उदय से बाधाएं उपस्थित होती रहती है। हमारा विकास कभी नहीं होता। विकास इसलिए होता है कि हमारी स्वतंत्र सत्ता है, हमारा स्वतंत्र उपादान है। __मिट्टी घड़ा बनती है। यह कोई कुंभकार की अंगुलियों का चमत्कार नहीं है। मिट्टी में घड़ा बनने का उपादान है। उसमें उपादान है तभी वह घड़ा बनती है। इस निर्मिति में दूसरे-दूसरे अनेक निमित्त भी सहायक हो सकते हैं। परन्तु मिट्टी का घड़े के रूप में परिवर्तित होने का मूल है उपादान। उपादान को उत्पन्न नहीं किया जा सकता। दूसरे-दूसरे साधन सहायक-सामग्री बन सकते हैं परन्तु वे सब मिलकर भी उपादान को उत्पन्न नहीं कर सकते। उपादान को उत्पन्न करने की शक्ति किसी में नहीं है। ___उपादान वही होता है जो द्रव्य का घटक होता है। कर्म में यह शक्ति नहीं है कि वह आत्मा में ज्ञान के पर्यायों को उत्पन्न कर सके, चैतन्य के पर्यायों को उत्पन्न कर सके, आनन्द के पर्यायों को उत्पन्न कर सके, शक्ति के पर्यायों को उत्पन्न कर सके। कर्म ये कभी नहीं कर सकते, क्योंकि ये सब कर्म के स्वभाव नहीं हैं। चैतन्य, आनन्द और शक्ति-ये आत्मा के उपादान हैं। इसलिए आत्मा ही उनका घटक है। आत्मा में ही यह शक्ति है कि वह अपने पर्यायों को उत्पन्न कर सकता है इसीलिए उसका स्वतंत्र कर्तृत्व है, अबाधित कर्तृत्व है। यह हमारे स्वतंत्र कर्तृत्व का पक्ष है। ___ एक दूसरा पक्ष और है। आत्मा के साथ राग-द्वेष का परिणाम जुड़ा हुआ है। राग-द्वेष की धारा प्रवाहित है, इसलिए आत्मा के साथ परमाणुओं का संयोग होता है। वे परमाणु जुड़ते हैं, आत्मा को प्रभावित करते हैं। वे आत्मा के कार्य का प्रभावित करते हैं, आत्मा के कर्तृत्व को प्रभावित करते हैं। यह इसलिए होता है कि आत्मा के साथ शरीर का योग है। प्रभाव का आदि-बिन्दु है-शरीर। हमारी परतंत्रता का आदि-बिन्दु है-शरीर। आत्मा के साथ शरीर है, इसलिए हम परतंत्र हैं। स्वतंत्र या परतंत्र? 111