________________ की शक्ति तथा मन के ज्ञान की शक्ति को आवृत्त करना ज्ञानावरण कर्म का विपाक है। ज्ञानावरण कर्म जब विपाक में आता है, तब वह हमारी ज्ञान की शक्तियों को ढांक देता है। ____ दर्शनावरण कर्म का विपाक होता है, तब हमारी देखने की शक्ति आवृत्त हो जाती है। नींद आती है, गहरी नींद आती है, इतनी गहरी नींद कि जिस नींद में आदमी दिन में की हुई कल्पनाओं को क्रियान्वित कर डालता है। इतनी प्रगाढ़ निद्रा कि आदमी नींद में ही मीलों चला जाता है, काम कर डालता है, किसी को पीट डालता है, कुछ तोड़ डालता है, फिर घर में आकर बिस्तर पर लेट जाता है। इतना होने पर भी उसकी नींद नहीं टूटती। ऐसी नींद में एक विशिष्ट प्रकार की शक्ति उत्पन्न होती है और उस शक्ति से प्रेरित होकर व्यक्ति असंभव कार्य भी कर डालता है। ऐसा दर्शनावरण कर्म के विपाक से होता है। मोह कर्म का विपाक होता है तब राग-द्वेष का चक्र चलने लगता है, विभिन्न प्रकार के आवेग उत्पन्न होते हैं, विभिन्न प्रकार की वासनाएं उभरती हैं, भय जागता है तथा अन्यान्य आवेग भी कार्यरत हो जाते हैं। ___कर्मों के विपाक का यह चक्र अविश्रांत गति से घूमता रहता है। कभी कोई विपाक जागता है और अभी कोई। इनकी निरंतरता टूटती नहीं। क्या हम इन विपाकों को निरस्त कर सकते हैं? नहीं, इन्हें निरस्त नहीं किया जा सकता। किन्तु इनको हम रोक सकते हैं। एक प्रक्रिया है-कर्म को न बांधने की, कर्म के बीज को समाप्त करने की। कर्म का बंधन न हो, इसमें हम जारूक रहें, अप्रमत्त रहें। यह भी साधना की एक प्रक्रिया है। साधना की एक प्रक्रिया यह भी है कि जो विपाक आने वाले हैं, उनके प्रति हम पहले से ही जागरूक हो जाएं। उन विपाकों को हम बदल दें। अथवा हम उन विपाकों को आने ही न दें। कर्मों को हमने बांध दिया। कर्म बंध गए। हमारे ही अज्ञानवश, प्रमादवश, हमारी ही भूलों के कारण वे कर्म आकर चिपक गए। वे परिणाम देने वाले हैं। उनका विपाक-काल है। हम जागरूक हो जाएं। हम जाग जाएं। 68 कर्मवाद